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Showing posts from 2020

बगिया

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  "बगिया" फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये। मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।। सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये। रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।। सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते। बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।। बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते। पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।। सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ। महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।। रचनाकार  महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

कातिक पुन्नी

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  *कातिक पुन्नी* कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे। हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।। बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे। हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे।। महादेव के पूजा करके,  जयकारा ल लगावत हे। गीत भजन अउ रामायण के,  धुन हा अबड़ सुहावत हे।। दरशन करके महादेव के, माटी तिलक लगावत हे। बेल पान अउ नरियर भेला, श्रद्धा फूल चढ़ावत हे।। मनोकामना पूरा होही , जेहा दरशन पावत हे । कर ले सेवा साधु संत के, बइठे धुनी रमावत हे।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

सरस्वती वंदना

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  "सरस्वती वंदना"  (गीतिका छंद)  ज्ञान के भंडार भर दे , शारदे माँ आज तैं । हाथ जोंड़व पाँव परके , राख मइयाँ लाज तैं ।। कंठ बइठो मातु मोरे , गीत गाँवव राग मा । होय किरपा तोर माता,  मोर सुघ्घर भाग मा ।। तोर किरपा होय जे पर , भाग वोकर जाग थे । बाढ़ थे बल बुद्धि वोकर , गोठ बढ़िया लाग थे ।। बोल लेथे कोंदा मन हा , अंधरा सब देख थे । तोर किरपा होय माता  , पाँव बिन सब रेंग थे ।। रचनाकार महेंद्र देवांगन *माटी* पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

मुनिया रानी

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  "मुनिया रानी"  (बालगीत ) ( चौपाई छंद ) भोली भाली मुनिया रानी । पीती थी वह दिनभर पानी ।। दादा के सिर पर चढ़ जाती। बड़े मजे से गाना गाती ।। दादा दादी ताऊ भैया । नाच नचाती ताता थैया।। खेल खिलौने रोज मँगाती। हाथों अपने रंग लगाती।। भैया से वह झगड़ा करती। पर बिल्ली से ज्यादा डरती।। नकल सभी का अच्छा करती। नल में जाकर पानी भरती।। दादी की वह प्यारी बेटी । साथ उसी के रहती लेटी।। कथा कहानी रोज सुनाती। तभी नींद में वह सो जाती।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

वंदना

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  "वंदना"  (दोहा) करूं वंदना नित्य ही, हे गणनायक राज। संकट सबके टाल दो, सिद्ध होय सब काज।। काम मिले हर हाथ को, नहीं पलायन होय। भूखा कोई मत रहे, बच्चे कहीं न रोय।। कोरोना संकट हटे, बीमारी हो दूर। स्वस्थ रहे सब आदमी,  नहीं रहे मजबूर ।। भेदभाव को छोड़ कर,  रहे सभी अब साथ। नवयुग का निर्माण हों, हाथों में दें हाथ ।। करुं आरती रोज ही, आकर तेरे द्वार । करो कृपा गणराज जी,  वंदन बारंबार ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

गोबर बिने बर जाबो

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  "गोबर बिने बर जाबो" (सार छंद) चलो बिने बर जाबो गोबर, झँउहा झँउहा लाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सुत उठ के बड़े बिहनिया ले, बरदी डाहर जाबो। पाछू पाछू जाबो तब तो , गोबर ला हम पाबो ।। गली गली में घूम घूम के,  गोबर रोज उठाबो । बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। दू रुपिया के भाव बेचबो , कारड मा लिखवाबो। कुंटल कुंटल बेच बेच के, हफ्ता पइसा पाबो ।। छोड़ सबो अब काम धाम ला, गोबर के गुण गाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सेवा करबो गौ माता के,  तब तो गोबर देही। सुक्खा कांच्चा सब गोबर ला, शासन हा अब लेही।। रचनाकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया कबीरधाम  छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

उगता सूरज ढलता सूरज

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  "उगता सूरज ढलता सूरज"  ( सार छंद)  उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे । आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।। कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना। सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।। ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई। करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।। कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ। होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।। उगता सूरज ढलता सूरज,  बतलाती है नानी ।। ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।। रचनाकार -  महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  छत्तीसगढ़ 

औघड़ दानी

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  "औघड़ दानी" ************ भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी । नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।। कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला । भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।। द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते। माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।। महेन्द्र देवांगन "माटी" प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  छत्तीसगढ़

बंधन

 बंधन (ताटंक छंद) **************** जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे। कुछ भी संकट आये हम पर , कभी नहीं घबरायेंगे।। गठबंधन है सात जनम का, ये ना खेल तमाशा है । सुख दुख दोनों साथ निभाये, अपने मन की आशा है।। प्रेम प्यार के इस बंधन को, भूल नहीं अब पायेंगे। जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे।। महेन्द्र देवांगन "माटी" प्रेषक - (पुत्री - प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priya Dewangan Priyu

नदियाँ

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  नदियाँ (सार छंद) *************** कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचना:- महेन्द्र देवांगन *माटी*  प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*) पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन ( सरसी छंद) आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।  है अटूट नाता बहनों से   दे अनुपम  उपहार ।। राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर। खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।। सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार। है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।। हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार । रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।। राखी के इस शुभ अवसर पर,  सजे हुए हैं द्वार । है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान । वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।। आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार। है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

बीमारी के रोना

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बीमारी के रोना बीमारी के सब रोना हे। आ गे अब कोरोना हे। मुहूँ कान ला बाँधे राहव। बार बार अब धोना हे।। धुरिहा धुरिहा घुँच के राहव। मया पिरित नइ खोना हे। जींयत रहिबो दुनिया में ता । प्रेम बीज ला बोना हे।। सबो जगा बगरे बीमारी । बाँचे नइ गा कोना हे। सवधानी सब बरतो भैया । जिनगी भर अब ढोना हे।। हाँसत खेलत दिन बीताबो। फोकट के नइ रोना हे। ये माटी के सेवा करके। करजा सबो चुकोना हे।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़़ 

प्रकृति की लीला

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प्रकृति की लीला देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है। एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।। करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है। करो प्रकृति का संरक्षण,  कहर अभी भी जारी है ।। मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे। पाशा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे ।। करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है । सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाता है ।। संभल जाओ दुनिया वालों, आई विपदा भारी है। कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

शिक्षा दान

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शिक्षा दान (दोहे) जाओ शाला रोज के, तभी मिलेगा ज्ञान । नाम करो इस देश का,बनो सभी विद्वान ।। शिक्षा धन अनमोल है,  कीमत इसकी जान। नहीं होय शिक्षा बिना, मानुष का सम्मान ।। मिले कहीं भी ज्ञान तो,  बैठो उसके पास। सुनो ध्यान से बात को, मन में रखकर आश।। भेदभाव को छोड़ कर,  बाँटो सब में ज्ञान । जो बाँटे हैं ज्ञान को , बने वही विद्वान ।। शिक्षा दान अमोल है, मन में खुशियाँ लाय। बाँटो जितना ज्ञान को , उतना बढ़ता जाय।। बनो नहीं कंजुस कभी,  खुलकर बाँटो ज्ञान । इधर उधर सब छोड़कर, पुस्तक पर दो ध्यान ।। पढो लिखो सब प्रेम से, बन जाओ विद्वान । खोज करो हर रोज सब,ज्ञान और विज्ञान ।। कर लो शिक्षा दान सब, कर्म करो यह पुण्य । मिले शांति मन को तभी, नहीं रहेगा शून्य ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

बरखा रानी आई है

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बरखा रानी आई है (ताटंक छंद) गड़गड़ गरजे आसमान से,  घोर घटा भी छाई है। छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है।। झूम उठी है धरती सारी, पौधे सब मुस्काये हैं । चहक उठी है चिड़िया रानी,  भौंरा गाना गाये हैं ।। ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो,  हरियाली अब छाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी  आई है।। लगे छलकने ताल तलैया , पोखर सब भर आये हैं । कलकल करती नदियाँ बहती,  झरने गीत सुनाये हैं ।। चमक चमक कर बिजली रानी,  नया संदेशा लाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। खुशी किसानों की मत पूछो,  अब तो फसल उगाना है। नये तरीकों से खेतों में,  नई क्रांति अब लाना है।। माटी की है महक निराली, फसलें भी लहराई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendradewanganmati@gmail.com

सपने

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बंद नयन के सपने मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

चीन को ललकार

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चीन को चेतावनी (लावणी छंद) आँख दिखाना छोड़ो हमको, नहीं किसी से डरते हैं । हम भारत के वीर सिपाही, कफन बाँध कर लड़ते हैं ।। एक कदम तुम आगे आओ, पैर काट कर रख देंगे। वतन बचाने के खातिर हम,इतिहास नया लिख देंगे।। चलो नहीं अब चाल चीन तुम, हमसे जो टकराओगे। याद करोगे नानी अपनी, पाछे फिर पछताओगे ।। छोटी छोटी आँखें तेरी,  बिल्ली जैसी लगते हो। हाथ मिलाकर भारत से तुम, गद्दारी ही करते हो।। व्यर्थ नहीं जायेगा अब ये , वीरों की यह बलिदानी। बदला लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं मिलेगा अब पानी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

आया नया सवेरा

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आया नया सवेरा (दोहा) नया सवेरा आ गया , सबको करुं प्रणाम। आओ मिलजुल कर करें , पूरा हो सब काम।। फूल खिले हैं बाग में , भौरें भी मँडराय । नया सबेरा छा गया , पंछी गाना गाय।। निकला सूरज भोर में , सारा जग चमकाय। नदियाँ कल कल बह रही , झरनें भी लहराय।। धरती माता हँस रही , पत्ते शोर मचाय। तितली रानी उड़ रही , बागों पर इठलाय।। कोयल कूके पेड़ में , मीठी गीत सुनाय। ताजा ताजा फल लगे , सारे मिलकर खाय।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dwangan Priyu

सुरतांजलि

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सुरतांजलि लक्ष्मण मस्तुरिया सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव। छत्तीसगढ़ के मयारु बेटा,  तोला माथ नवावँव।। जनम धरे तैं मस्तुरी म , मस्तूरिहा कहाये। बचपन बीतिस खेलकूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।। तोर गीत हा सुघ्घर लागे, जन मन मा बस जाथे। संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।। अमर करे तैं नाम इँहा के,  माटी के तैं हीरा। गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैंहर पीरा।। अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी। सब ला मया लुटाये तैंहर, हरिशचंद कस दानी।। छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तैं बोंये। सुरता करके आज सबोझन,  अंतस ले गा रोये।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

पानी हे अनमोल

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पानी हे अनमोल पानी हे अनमोल संगी , पानी ल तुम बचावव। सही उपयोग करो मिल के , जादा झन गँवावव।। पानी जिनगी के अधार हरे , येला तुमन जानव। पानी बिन हे जग अंधियार  , येला सबझन मानव।। एक एक बूँद पानी के जी , बहुते हे अनमोल। एक बूंद से जिनगी मिलत , एकर समझो मोल।। पानी से होवत दिन सबो के  , पानी से होवत शाम। गरमी में जो पानी पियाथे , ओकर बाढ़थे मान।। चिरई चिरगुन ल पानी पियाव  , रख दो कटोरी में पानी। पानी नई मिलही कोनो ल , त याद आ जाही नानी।। कु. प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया पंडरिया छत्तीसगढ़

तुलसी मइया

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तुलसी मइया मोर अँगना में हाबे, तुलसी के चँउरा। तीरे तीर खेलत हे, लइका मन भँउरा।। नहा धो के दाई ह, पानी चढ हाथे। संझा बिहनिया रोज, दीया जलाथे।। तुलसी के मंजरी के, परसाद पाथे। ओकर किरपा ले, अब्बड़ सुख पाथे।। तुलसी चँउरा में,  सालिक राम हाबे। कर ले पूजा संगी, आशीरवाद पाबे।। जुड़ खाँसी सरदी, सबला मिटाथे। नियम पुरवक जेहा, पत्ती ल खाथे।। तुलसी मइया के तो , महिमा हे भारी। एकरे सेती घर में, पूजा करथे नर नारी ।। जय जय जय तुलसी मइया, तोर महिमा गावँव। फूल पान नरियर मँय, तोला चढावँव।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

सुखी सवैया

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सुखी सवैया (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + 1 + 1 सिधवा मनखे बनके कतको झन आवत घूमत लूट मचावत। खुसरै घर भीतर फोकट के डउकी लइका मन ला डरवावत। चलथै धर के हथियार घलौ कुछ बोलत हौ तब खून बहावत। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलय फोकट बात बनावत।। (2) सिधवा मनखे बनके कतको झन आवँय लूट मचावत हावँय। खुसरैं घर भीतर फोकट के लइका मन ला डरवावत हावँय। चलथैं धरके हथियार घलौ कुछ बोलव खून बहावत हावँय। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलँय बात बनावत हावँय। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

अरविंद सवैया

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अरविंद सवैया  (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + लघु (1) झन लोभ करौ झन पाप करौ झन मारव काटव पुण्य कमाव। रख दीन दुखी बर ध्यान सदा बिगड़ी सबके अब रोज बनाव। हर लौ सबके तन के दुख ला रख प्रेम सदा हिरदे म लगाव। बन के मितवा सबके हितवा रख मान सबो बर प्रेम जगाव।। (2) घर मा रहिके सब काम करौ झन फोकट के अब बैठ पहाव। बिहना उठ के नित दौड़ लगा सब आलस छोड़ नदी म नहाव। कर सूर्य प्रणाम लगा दँड बैठक ध्यान करौ सब रोग भगाव। बनही सबके बिगड़ी मनखे मन के अब आवव भाग जगाव।। (3) पढ़लौ लिखलौ जिनगी गढ़लौ रख मान सबो झन नाम कमाव। सब काम बुता बर हाथ बँटावव देश विदेश ग धाक जमाव। रख लौ कुल इज्जत मान सदा रइही सुख मा परिवार चलाव। चलही जिनगी बनही बिगड़ी मिल काम करौ सब भाग जगाव ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati ( छत्तीसगढ़ी भाषा में)

मनहरण घनाक्षरी

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मनहरण घनाक्षरी 8 8 8 7 वर्ण (1) घर चल झट पट चल घर , फट फट मत कर रट पट रट पट , दाई तोर आत हे । मट मट मट मट , टूरा करे खट पट चट चट चट चट , मार रोज खात हे।। काम बुता करे नहीं, लइका ला धरे नहीं, नशा पान रोज करै , घूम घूम खात हे। संगी साथी छूट गेहे, मया नाता टूट गेहे, रात दिन ताश खेले, जुँवा ठौर जात हे।। ******************************** (2) कोरोना जब ले आहे कोरोना, सब ला होगे गा रोना, देश परदेश अब,  सबो जग छाय हे। करे कोई करनी ला, भरे कोई भरनी ला, आनी बानी साग खाये ,  बीमारी हा आय हे। बगरे हे सबो कोती, जावौ झन एती वोती, बीमारी के इलाज ला, अभी नइ पाय हे। भागही कोरोना जब, नइ परै रोना तब, गारी देवै सबोझन,  कोन बैरी लाय हे।। *********** (3)  बरसात गड़ गड़ गरजत, झम झम बरसत, बिजली हा चमकत, बरसात आत हे। करा पानी रोज गिरै, नोनी बाबू सबो बीनै, पच पच कूदै टूरा , चिखला मतात हे। गाँव गली खेत खार, पानी चलै धारे धार, गर गर गर गर , रेला हा बोहात हे। नदी नाला भरे हावै , देखे बर सबो जावै, टर टर टर टर , मेचका टर्रात हे ।। ************** (4)  मजदूर सुत उठ काम

मेरी माँ

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मेरी माँ मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती। जब भी माँगू दो रोटी तो, चार हमेशा लाती।। भूख नहीं लगता है फिर भी,  मुझको वह खिलाती। जाता हूँ जब घर से बाहर,  पानी जरुर पिलाती।। सबको खाना देकर ही वह, अंतिम में ही खाती। मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।। किसी काम से जाता हूँ तो, मुँह मीठा कर जाती। नजर लगे न मेरे लाल को, टीका जरुर लगाती।। नींद कहीं जब न आये तो, लोरी रोज सुनाती। थपकी देकर हाथों अपनी, गोदी मुझे  सुलाती।। शिकन देखकर माथे की वह , लकीरों को पढ़ जाती। मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।। महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 

अकती तिहार

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अकती तिहार ( चौपाई छंद में) बाजा बाजे मड़वा छागे , पुतरा पुतरी अकती आ गे। नोनी बाबू नाचन लागे , सबझन के अब भाग ह जागे। कोनों डारा पाना लावै , कोनों मड़वा छावन लागै। बाजे अब्बड़ गड़वा बाजा , सजगे हावय दुल्हा राजा। सकलाये हे सबझन पारा , नेउता हवय झारा झारा। टूरा मन सब बनय बराती , टूरी मन हा हवय घराती।। रंग रंग के गाना गावय , हरदी तेल ल अबड़ चढ़ावय। दुल्हा दुल्ही भाँवर पारै , पारा भर टीकावन डारै।। हँसी ठिठोली अब्बड़ होवय , बीदा देवय दाई रोवय। पुतरी पुतरा होय बिदाई , आहू सबझन दाई माई।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

कोरोना के डर

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कोरोना के डर गली खोर हा सुन्ना परगे, घर में सबो धँधाये हे। गोल्लर कस घूमे जे टूरा , खूँटा आज बँधाये हे।। जावत हे जे एती ओती, अब्बड़ डंडा खावत हे। सुसके सुसके घर में आवत, कोनों ल नइ बतावत हे।। कोरोना के खेल ल देखव, कइसे नाच नचावत हे। मचगे हाहाकार ग संगी, रोजे इही बतावत हे।। खुसरे खुसरे नोनी बाबू, विडियो अबड़ बनावत हे। गर्रा टोंटा हाबे तब ले, सुर ला अबड़ लमावत हे।। नाती नतरा खेलत हावय, डोकरी ह खेलावत हे। किसम किसम के बात बता के, डोकरा ह झेलावत हे।। निकलो झन अब कोनों घर ले, सब ला इही बतावत हे। कोरोना ह भागही भैया , जनता ला समझावत हे।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

संकट की घड़ी

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संकट की घड़ी दाऊ मंगल सिंह का भरा पूरा परिवार था। घर पर बेटे बहू पोती पोता सब खुशी से रहते थे । दाऊ जी रिटायरमेंट के बाद अधिकांश समय अपने पोते पोतियों के साथ बिताते थे। बाजार से सब्जी लाना व राशन का सामान लाना उनकी ही जिम्मेदारी थी । वह भी खुश रहता था,  क्योंकि बाजार में दो चार मित्रों से मुलाकात हो जाती थी और समय भी कट जाता था। लाकडाउन का पालन परिवार के सभी लोग करते थे। दाऊ जी खुद किसी को बाहर नहीं निकलने देते थे। मुहल्ला पूरा सुनसान नजर आता था। राशन सामान के खतम होने पर एक दिन उसकी पत्नी सामान लाने के लिए बोली। दाऊ जी खुशी खुशी सामान लेने चले गए । जाते वक्त घर के सभी लोग उसे समझाने लगे कि किसी से ज्यादा बातचीत मत करना । दूरी बनाकर रहना। किसी को छूना मत।मुँह में माश्क लगाये रहना आदि आदि । दाऊ जी जब दुकान में गये तो उस दिन कुछ ज्यादा ही भीड़ थी । इसलिए उसे घर आने में देर हो गई । उसकी पत्नी थोड़ा चिल्लाई भी । दाऊ जी ने कहा  - अरे भागवान दुकान में भीड़ थी इस कारण देर हो गया । दाऊ जी हाथ मुँह धोकर बैठे थे कि अचानक उसे बुखार आना शुरु हो गया । शरीर तीपने लगा।गला सुखने लगा। घर के

कोरोना के रोना

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कोरोना के रोना ( सार छंद) जब ले आये हे कोरोना, सबके होगे रोना। साफ सफाई सुघ्घर राखव, हाथ मुँहू ला धोना।। आवव जावव फोकट के झन, घर मा बइठे राहव। हाथ मिलाना छोड़व संगी, नमस्ते सबो काहव।। अदर कचर झन खावव भैया, बीमारी हा होथे।  माने नइ जे बात काकरो, उही आदमी रोथे।। सरदी खाँसी जर बुखार मा, डाक्टर कर ले जावव। मुँहू कान ला बाँधे राहव, बढ़िया जाँच करावव।। काल बरोबर हे कोरोना, दुनिया भर मा छागे। दिखय नहीं कोनों ला येहा, एकर से डर लागे।। रहो सावधानी से भैया,  येला मार भगावव । जनता करफू पालन करलव, घर मा सबझन राहव।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

कोरोना आल्हा छंद

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कोरोना वायरस  (आल्हा छंद) फइले हे कोरोना संगी, मच गेहे गा हाहाकार। चीन देश ले आये हावय, एकर आघू सबो लचार।। देश बिदेश सबो जग फैलत, मनखे हावय सब परशान। खतरा हावय अब्बड़ येहा, वैज्ञानिक मन हे हैरान ।। हाथ मुँहू ला धोवव सुघ्घर, साबुन सोडा रोज लगाव। साफ सफाई घर मा राखव, भीड़ भाड़ मा कभू न जाव।। सरदी खाँसी छीक ह आथे, डाक्टर कर तुरंत ले जाव। पानी ला उबाल के पीयव, कोरोना ला दूर भगाव।। हाथ मिलाना छोड़व संगी, कर धुरीहा ले नमस्कार । मुँहू कान ला बाँध के राखव, कोरोना के होही हार।। माँस मदिरा पीना छोड़व ,  ताजा भोजन घर मा खाव। बरतो सब सवधानी भैया , कोरोना ला झन डर्राव।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

कोरोना के कहर

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कोरोना के कहर वाह रे कोरोना - सब जगा होगे हे रोना। आज देश विदेश सबो जगा एक्केच बात के चरचा हे। वो हरे कोरोना वायरस के । कोरोना वायरस के कहर ह चीन से निकल के दुनिया के 122 देश में फैल गेहे। माने जाथे के येहा अब तक के सबले बड़े कहर बरपाने वाला वायरस हरे। एकर चपेट में आ के लगभग 5000 ले जादा आदमी मन अपन जान गँवा चुके हे। ये बहुत बड़े चिंतनीय बात हरे। विश्व स्वास्थ्य संगठन  (W H O) ह येला महामारी घोषित कर चुके हे। आदमी मन ल सावधानी बरते के निर्देश बार - बार सरकार ह देवत हे। कोरोना वायरस का हरे ------- कोरोना वायरस ह एक अइसे सूक्ष्म वायरस हरे जेहा आदमी के शरीर में पहुंच के बहुत जल्दी अपन प्रभाव देखाथे। सबले पहिली येहा चीन के वुहान नगर से शुरू होइस अउ दुनिया भर में तेजी से फैल गेहे। एकर अभी तक कोनों पक्का इलाज नइ निकले हे। वैज्ञानिक मन एकर बारे में बहुत शोध करत हे। ये वायरस ल इबोला, सार्स, अउ स्वाइन फ्लू जइसे वायरस ले कोरोना ल सबले जादा खतरनाक वायरस माने जावत हे। बीमारी के लक्षण  --------- कोरोना वायरस के लक्षण सर्दी,  खाँसी,  बुखार, गले में खराश, साँस ले में तकलीफ इही एकर लक्षण

कोरोना वायरस

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कोरोना वाइरस जगह जगह होवत हे कोरोना के चरचा। वायरस फैलत हे कहिके बाँटत हे परचा।। टीवी हो चाहे मोबाइल हो , दिनभर कोरोना वायरस ला दिखात हे। कइसे बचना हे कहिके तरीका सीखात हे।। विदेश में फैले कोरोना ह अब ,हमर देश म आवत हे। विदेशी मन आ आ के , बीमारी फैलावत हे।। मुहूं बांध के रेंगत आदमी ह ,अब नई चिन्हात हे। विदेशी मन आ आ के ,कोरोना फैलात हे।। रायपुर में आगे कोरोना कहिके ,आदमी मन डर्रात हे। कोरोना से बचे के तरीका ल , टीवी में बतात हे।। हेलो करे ला छोडो , नमस्ते करे ल सीखात हे। कोनो खाँसत आदमी त , डॉक्टर ल दिखात हे। रचना प्रिया देवांगन प्रियू पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dewangan priyu

मस्ती के फुहार - होली के तिहार

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मस्ती के फुहार - होली के तिहार होली तिहार के नाम सुनते साठ मन में अलग उमंग अउ खुशी छा जाथे। आँखी के आघू मा रंग, गुलाल, पिचकारी, छेना,लकड़ी जइसे बहुत अकन चीज हा आँखी मा झूले ला धर लेथे। ये साल के होली- - ये साल होली ला 09 मार्च सन 2020 के रात मा जलाय जाही अउ 10 मार्च 2020 दिन मंगलवार के धुरेड़ी यानी रंग गुलाल खेले जाही। होली कब मनाय जाथे -------- होली के तिहार ला फागुन मास के पूर्णिमा के दिन मनाय जाथे। होली के तिहार हा बसंत ऋतु के सबले बड़े तिहार हरे। हमर भारत देश मा हिन्दू मुस्लिम सबो धरम के आदमी मन मिलजुल के ये तिहार ला मनाथे अउ एक दूसर में रंग लगा के बधाई देथे। होली के तैयारी  --------- होली तिहार के तैयारी हा बसंत पंचमी के दिन ले शुरु हो जाथे। ये दिन लइका मन हा होली डाँड़ मा अंडा पेड़ के लकड़ी ला पूजा करके गड़ा देथे अउ येकर बाद मा छेना लकड़ी ला लान - लान के रोज डारत जाथे। चंदा माँगे के परंपरा  ---------- होली तिहार के एक हप्ता पहिली लइका मन हा रस्सी बाँध के या रस्ता ला रोक के अवइया जवइया मन से चंदा माँगथे। ये चंदा के पइसा ला छेना लकड़ी नँगाड़ा अउ रंग गुलाल मा खरचा करथे। पहि

बासन्ती रँग

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बासन्ती रँग हुआ भोर अब देखो प्यारे, पूर्व दिशा लाली छाई। लगे चहकने पक्षी सारे, गौ माता भी रंभाई।। कमल ताल में खिले हुए हैं,  फूलों ने ली अँगड़ाई। मस्त गगन में भौंरा झूमे, तितली रानी भी आई।। सरसों फूले पीले पीले, खेतों में अब लहराये। कूक उठी है कोयल रानी, बासन्ती जब से आये।। है पलाश भी दहके देखो, आसमान में रँग लाई। पढ़े प्रेम की पाती गोरी, आँचल अपनी लहराई।। दिखे प्रेम का भाव अनोखा,  सुंदर चिकने गालों में । झूम रही है सांवल गोरी, गजरा डाले बालों में ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ (फोटो गुगल से साभार)

औघड़ दानी

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औघड़ दानी भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी । नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।। कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला । भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।। द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते। माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

स्वामी विवेकानंद

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स्वामी विवेकानंद जिसने भारत की माटी को, माथे तिलक लगाया है। और यहाँ के संदेशों को, जन जन तक पहुँचाया है।। घूम फिर विदेशों में भी , जिसने अलख जगाया है। संस्कृति का संरक्षक बन, विवेकानंद कहलाया है।। युवाओं को आगे बढ़ने,  जिसने राह दिखाया है। नमन करें इस दिव्य पुरुष को, जीना हमें सिखाया है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

बिन मौसम बरसात

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बिन मौसम बरसात बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी ।  धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। खेत खार मा करपा माढय , होवत हे नुकसानी । कइसे लानय अब किसान हा, बुड़गे सब्बो पानी ।। माथा धरके बइठे हावय, रोवय सबो परानी । धान पान हा कइसे बाँचय, होय करेजा चानी ।। करजा बोड़ी अब्बड़ हावय , छूट कहाँ अब पाबो। धान पान हा होवय नइहे, काला अब हम खाबो ।। खरचा चलही कइसे संगी , कइसे के जिनगानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati