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भाग्य

  "भाग्य" (सरसी छंद) भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक। कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख।। जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत। पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत।। जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम। रूख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम।। कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान। मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान।। "माटी" बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात। सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात।। रचनाकार महेंद्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन ( सरसी छंद) आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।  है अटूट नाता बहनों से   दे अनुपम  उपहार ।। राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर। खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।। सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार। है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।। हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार । रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।। राखी के इस शुभ अवसर पर,  सजे हुए हैं द्वार । है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान । वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।। आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार। है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com