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Showing posts from August, 2020

नदियाँ

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  नदियाँ (सार छंद) *************** कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचना:- महेन्द्र देवांगन *माटी*  प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*) पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन ( सरसी छंद) आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।  है अटूट नाता बहनों से   दे अनुपम  उपहार ।। राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर। खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।। सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार। है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।। हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार । रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।। राखी के इस शुभ अवसर पर,  सजे हुए हैं द्वार । है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान । वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।। आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार। है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com