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भाग्य

  "भाग्य" (सरसी छंद) भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक। कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख।। जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत। पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत।। जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम। रूख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम।। कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान। मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान।। "माटी" बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात। सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात।। रचनाकार महेंद्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

शारदे वंदन

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  "शारदे वंदन" चरण कमल में तेरे माता, अपना शीश झुकाते हैं। ज्ञान बुद्धि के देने वाली, तेरे ही गुण गाते हैं।। श्वेत कमल में बैठी माता, कर में पुस्तक रखती। राजा हो या रंक सभी का, किस्मत तू ही लिखती।। वीणा की झंकारे सुनकर, ताल कमल खिल जाते हैं। बैठ पुष्प में तितली रानी, भौंरा गाना गाते हैं।। मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे, ज्ञान बुद्धि तू देती है। शब्द शब्द में बसने वाली, सबका मति हर लेती है।। मैं अज्ञानी बालक माता, शरण आपके आया हूँ। झोली भर दे मेरी मैया, शब्द पुष्प मैं लाया हूँ।। रचनाकार  महेंद्र देवांगन "माटी" पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

सपने

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  "सपने" मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़