गोबर बिने बर जाबो
"गोबर बिने बर जाबो"
(सार छंद)
चलो बिने बर जाबो गोबर, झँउहा झँउहा लाबो।
बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।।
सुत उठ के बड़े बिहनिया ले, बरदी डाहर जाबो।
पाछू पाछू जाबो तब तो , गोबर ला हम पाबो ।।
गली गली में घूम घूम के, गोबर रोज उठाबो ।
बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।।
दू रुपिया के भाव बेचबो , कारड मा लिखवाबो।
कुंटल कुंटल बेच बेच के, हफ्ता पइसा पाबो ।।
छोड़ सबो अब काम धाम ला, गोबर के गुण गाबो।
बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।।
सेवा करबो गौ माता के, तब तो गोबर देही।
सुक्खा कांच्चा सब गोबर ला, शासन हा अब लेही।।
रचनाकार -
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
Bahut sundar
ReplyDeleteज़ोरदार प्रिया जी
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