संकट की घड़ी



संकट की घड़ी

दाऊ मंगल सिंह का भरा पूरा परिवार था। घर पर बेटे बहू पोती पोता सब खुशी से रहते थे । दाऊ जी रिटायरमेंट के बाद अधिकांश समय अपने पोते पोतियों के साथ बिताते थे।
बाजार से सब्जी लाना व राशन का सामान लाना उनकी ही जिम्मेदारी थी । वह भी खुश रहता था,  क्योंकि बाजार में दो चार मित्रों से मुलाकात हो जाती थी और समय भी कट जाता था।
लाकडाउन का पालन परिवार के सभी लोग करते थे। दाऊ जी खुद किसी को बाहर नहीं निकलने देते थे। मुहल्ला पूरा सुनसान नजर आता था।
राशन सामान के खतम होने पर एक दिन उसकी पत्नी सामान लाने के लिए बोली। दाऊ जी खुशी खुशी सामान लेने चले गए । जाते वक्त घर के सभी लोग उसे समझाने लगे कि किसी से ज्यादा बातचीत मत करना । दूरी बनाकर रहना। किसी को छूना मत।मुँह में माश्क लगाये रहना आदि आदि ।
दाऊ जी जब दुकान में गये तो उस दिन कुछ ज्यादा ही भीड़ थी । इसलिए उसे घर आने में देर हो गई । उसकी पत्नी थोड़ा चिल्लाई भी । दाऊ जी ने कहा  - अरे भागवान दुकान में भीड़ थी इस कारण देर हो गया ।
दाऊ जी हाथ मुँह धोकर बैठे थे कि अचानक उसे बुखार आना शुरु हो गया । शरीर तीपने लगा।गला सुखने लगा।
घर के लोग घबरा गये। घर में खुसुर फुसुर शुरु हो गया । सभी लोग कोरोना की आशंका से सहम गये।
बहू बोली कि - कोई पास में मत जाना,  नहीं तो हम लोग भी चपेट में आ जायेंगे। बच्चों को भी अच्छी तरह समझा दिये कि पास में नहीं जाना है। टी वी पर भी दिन रात कोरोना का समाचार चल रहा था। जिसे सुनकर लोग दहशत में थे।
घर वाले अब दाऊ जी को तरह तरह के सुनाने लगे। इसको आज ही बाजार जाना था। दुकान में भीड़ थी तो वापस आ जाना था । चार लोग मिले होंगे गप मारते बैठ गया होगा । सभी अपने अपने मुँह से कुछ भी कहे जा रहे थे।
दाऊ जी चुपचाप सिर गड़ाये सुन रहा था। उसका बदन बुखार से तपा जा रहा था।
मुहल्ले में यह खबर तेजी से फैल गया कि दाऊ जी को कोरोना हो गया है । पर मुहल्ले के कोई व्यक्ति डर के मारे मिलने नहीं  आया । दाऊ जी के बेटा ने 104 नंबर पर फोन कर पुलिस को सूचना दिये। सभी लोग एम्बूलेंस के आने का इंतजार करने लगे ।
तभी पास की एक बूढ़ी महिला आई और बोली कि दाऊ जी कुछ खाया पीया है कि नहीं?  नहीं तो पुलिस वाले ऐसे ही उठा के ले जायेंगे। पता नहीं वहां कितने समय खाना मिलेगा ?
अभी कुछ खिला पीला दो।
अब घर के लोग उसके पास जाकर खाना देने में आना कानी करने लगे। बेटा और बहू ने तो उसके पास जाने में साफ इंकार कर दिया । पत्नी भी हिचकने लगी। उसकी छोटी पोती बोली कि - दादा जी को मैं खाना दे देती हूँ । तो उसकी माँ उसे जोर से डाट लगाई और बोली अभी तू बच्ची है कुछ नहीं समझती।
बुढिया ने दाऊ जी की पत्नी से बोली कि आप ही उसे खाना दे दो । बेचारा दाऊ जी भूखा है। पत्नी भी कहने लगी कि ये भंयकर बीमारी है । देख नहीं रही हो दिन भर टी वी में चल रहा है उसको। पास में जायेंगे तो पूरा परिवार चपेट में आ जायेंगे। आखिरकार बुढिया बोली ला मैं खाना दे देती हूँ । और बुढिया ने दाऊ जी को दूर से खाना परोस दी। दाऊ जी सबके बातों को ध्यान से सुन रहा था । वह बोले मुझे भूख नहीं है । ये खाना वापस ले जाओ। सिर्फ एक गिलास पानी दे दो। गला सूखा जा रहा है ।
उसी समय एम्बुलेंस हार्ने बजाते हुए घर में पहुँच गया ।
आसपास के सभी लोग अपने अपने घर के छतों से देखने लगे।
एम्बुलेंस वाले दाऊ जी को ले जाने लगे । लेकिन घर के लोग कोई पास में नहीं आये। सभी बाल्कनी में खड़ा होकर देख रहे थे। दाऊ जी ने सबको देखा तो उसके आँख से आँसू निकलने लगा । उसे लग रहा था कि यह उसकी अंतिम बिदाई है। बिदाई में तो लोग गले मिलते हैं । लेकिन हे भगवान ये कैसी विपदा आ गई कि मैं तो गले भी नहीं मिल सक रहा हूँ । जिस परिवार से इतना प्रेम किया , वही परिवार के लोग आज मुझसे दूर भाग रहे हैं । वह फफक फफक कर रोने लगा और चुपचाप गाड़ी में बैठ गया ।
उसके जाते ही घर को  फिनाइल डाल डालकर धोया गया।
सेनेटाइज किया गया । तब सभी को चैन मिला।
इधर दाऊ जी का इलाज शुरु हुआ । खून और लार को टेस्ट के लिए भेज दिया गया । एक सप्ताह बाद रिपोर्ट आया कि उसे कोई कोरोना बीमारी नहीं है । एक सामान्य बुखार था।
अस्पताल से उसे छुट्टी दे दिया गया ।
अब दाऊ जी के मन में तरह तरह की बातें घुमने लगा। जिस परिवार से मैं इतना प्रेम किया वही परिवार मुझे लेने भी नहीं आया। ये प्रेम क्या एक छलावा है। सभी लोग क्या ऐसे ही स्वार्थी होते हैं?  संकट के समय भी किसी ने साथ नहीं दिया ।
यह सोंचते सोंचते वह अस्पताल से निकलकर जाने कहाँ चला गया पता ही नहीं चला।

( साथियों यह विपदा किसी के भी घर में  ना आये। संकट के समय धैर्य से काम लें और हमेशा परिवार का साथ दें।
घर में रहो, सुरक्षित रहो )

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