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Showing posts from December, 2019

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। हसिया धर के सुधा दीदी ,खेत डहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे।। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे।। धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुँहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे।। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खाँसत,नाक ह बोहावत हे। डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे।। आनी-बानी के गोली-पानी, टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे। बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे।। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे। लइका ल नउहा हे त ,कुड़क

जाड़ा

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जाड़ा जाड़ा अब्बड़ बाढ़ गे,  नइ होवत कुछु काम। दिन जल्दी बित जात हे, होवत झटकुन शाम ।। लकर धकर सब जाग के , बिहना काम म जाय । सेटर शाल ल ओढ़ के , जाड़ा रोज भगाय ।। रोवत लइका जाड़ मा , नाक घलो बोहाय। छेना लकड़ी बार के , लइका ला सेंकाय ।। पोंगा लानय काट के , दाई बरी बनाय । बादर हावय दोखहा , घेरी बेरी छाय ।। भाजी पाला जाड़ मा , अब्बड़ रोज मिठाय । राँधय भूँज बघार के , चाँट चाँट सब खाय ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" Priya Dewangan "Priyu"

चुनाव

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चुनाव आ गे हवय चुनाव,  सोच के वोट ल देहू । देही लालच रोज,  कभू झन पइसा लेहू ।। कहना माटी मान , वोट के कीमत जानव । करय सबो के काम , उही ला नेता मानव ।। पाँच साल मा आत हे , नेता मन हा गाँव जी । जीतथे जब चुनाव ला , खाथे अब्बड़ भाव जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"

आभार सवैया

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आभार सवैया गुरु वंदना पावैं पखारौं गुरू आज तोरे बुरा आदमी ला भला तैं बनायेस। अज्ञान के राह मा रोज जावौं धरे हाथ मोरे लिखे ला सिखायेस। दोहा सवैया सबो छंद जानेंव का होय रोला ह तेला बतायेस। कैसे चुकावौं गुरू तोर कर्जा महा मूर्ख चोला ल ज्ञानी बनायेस।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ी भाषा में) विधान  --- 8 तगन 221 × 8

मंदार माला सवैया

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मंदार माला सवैया कन्हैया बंशी बजाके सुनाये कन्हैया नदी के किनारे नचाये सबो । गैया चराये सखा संग जाये धरे गेंद छोटे ल खेले सबो । राधा ह आये मने मा हँसे पाँव पैरी बजाये त देखे सबो । नाचे कन्हैया रचाये ग लीला मजा लेय ताली बजाये सबो । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ विधान --- 7 तगन + गुरु 221 × 7 + 2

सर्वगामी सवैया

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सर्वगामी सवैया ******************* (1) जुन्ना खेल नँदागे आ गे जमाना नवा खेल के जी पुराना सबो खेल संगी नँदागे। जाने न जुन्ना कहाँ खेल खेले न गिल्ली न डंडा सबो हा भगागे। कुश्ती ल जाने न मस्ती ल जाने धरे फोन हाथे म जम्मो समागे। टी वी ल देखे मचाये ग हल्ला सबो आदमी हा उही मा झपागे।। (2) मारे फुटानी मारे फुटानी चलाये ग गाड़ी गिरे हाथ टूटे छिलाये ग माड़ी। माने नहीं आज बाते ल कोनों कुदाये गली खोर जाये ग बाड़ी। फूटे कभू माथ टूटे भले दाँत चेते नहीं वो चलाये ल गाड़ी । धोखा ल खाथे परे मार डंडा बचाये न कोनों जुड़ाथे ग नाड़ी।। (3) बेटी ल जानो बेटी ल जानो ग बेटी ल मानो कभू कोख मा आज येला न मारो। लक्ष्मी सहीं होय बेटी ह संगी रखो प्रेम से रोज येला दुलारो। सेवा करे रोज दाई ददा के कभू भेद जाने न चाहे ग मारो। बेटा कभू संग देवे नहीं ता चले आय बेटी ह वोला पुकारो।। (4) नशा छोड़ो छोड़ो नशा पान बीड़ी ल संगी करे जेन जादा बिमारी ग होथे। पैसा न बाँचे न कौड़ी न बाँचे मरे हाल होथे सुवारी ह रोथे। होथे ग पीरा सबे लूट जाथे खुदे आदमी रोज काँटा ल बोंथे। आघू न सोंचे न पाछू ल देखे नशा जेन बूड़े ग पैसा

हाथी आ गे

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हाथी आ गे ( कुण्डलियाँ छंद) हाथी आ गे खेत मा , देखे पूरा गाँव । रौंदत हावय धान ला , दुख ला कहाँ सुनाव।। दुख ला कहाँ सुनाव , हमर किसमत हे खोटा । जागत हावन आज  , रात भर काँपय पोटा ।। होगे बड़ नुकसान  , रोत हे सबझन साथी । जंगल झाड़ी छोड़  , खेत मा आ गे हाथी ।। जंगल झाड़ी काट के , सबझन महल बनाय । लाँघन मरगे जानवर , कइसे चारा पाय ।। कइसे चारा पाय , खेत मा खोजत आवय । देखत हरियर खार , पेट भर चारा खावय ।। सुन "माटी" के बात , कहाँ ले होवय मंगल । पछताही सब बाद  , साफ होगे हे जंगल ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

छ ग के वीर सपूत

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छ ग के वीर सपूत (आल्हा छंद) रामराय के घर मा आइस , भारत माता के गा लाल। ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।। लइका मन सँग खेलय कूदे , कभु नइ माने वोहर हार। भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।। जंगल झाड़ी पर्वत घाटी  , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय। अचुक निशाना वोकर राहय , बैरी मन ला मार गिराय।। नारायण सिंह नाम सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्राय। पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाय।। जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार । गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।। खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान । लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।। सन छप्पन अकाल परीस तब , जनता बर माँगीस अनाज । जमाखोर माखन बैपारी  , नइ राखिस गा वोकर लाज ।। आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम । सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।।  चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल। देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।। दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर। हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।। छंदकार महेन्द्

वीर नारायण सिंह

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छ ग. के पहिली शहीद  -- वीर नारायण सिंह जनम -- छत्तीसगढ़ राज के पहिली शहीद वीर नारायण सिंह हा हरे । वीर नारायण सिंह के जनम सन 1795 ई में बलौदा बजार जिला के सोनाखान नाम के एक छोटे से गाँव में होय रिहिसे । वोकर ददा (पिताजी) के नाम श्री रामराय सिंह रिहिसे । साहसी लइका  ------ वीर नारायण सिंह हा बचपना ले निडर अउ साहसी लइका रिहिसे । वोहर कोनों से डर्रावत नइ रिहिसे । तीरंदाजी , तलवार बाजी , अउ घुड़सवारी में घलो माहिर रिहिसे । वोहर अपन संगवारी मन ला भी ये सब ला सीखाय। ताकि मौका परे मा काम आ सके। घनघोर जंगल में घलो वोहर अकेल्ला घुमे बर चल देय। देशभक्ति के भावना ----- वीर नारायण सिंह में देश भक्ति के भावना रग रग में भरे रिहिसे । वोहर अंग्रेज मन के विरोध में हमेशा आवाज उठाइस अउ ओकर खिलाफ आंदोलन भी करीस । ये पाय के अंग्रेज मन ओकर से बहुत चिढहे। जनता के सेवा  ----- वीर नारायण सिंह हा जनता के सेवा करे बर हमेशा आघू राहय। वोकर से जो भी सहायता बन परे वो जरुर करय। वीर नारायण सिंह के पास एक घोड़ा राहय । वोहर हमेशा घोड़ा में चढ़ के घुमे। एक दिन जब वोहर अपन रियासत में घूमत रिहिसे तब कुछ आदमी मन ब

कछुआ और खरगोश

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कछुआ और खरगोश कछुआ और खरगोश में , हुई दोनो में रेस । बहुत घमण्डी था खरगोश , मारता था वह टेस । दोनों में एक बात चली, चलो लगाएँ रेस। हाथी आया बंदर आया , आया जंगल का राजा। चिड़िया रानी गाना गाई, लोमड़ी बजाया बाजा। दोनो निकल पड़े रेस में, खरगोश दौड़ लगाया । धीरे धीरे कछुआ चलकर, मंद मंद मुस्काया। थक कर बैठा खरगोश राजा, खाने लगा वह गाजर। खाते खाते वहीं सो गया, नाक बजा बजा कर। कछुआ आया धीरे धीरे , देखा खरगोश को सोते। निकल पड़ा वह आगे भैया खुश होते होते। नींद खुली जब खरगोश का, फिर से दौड़ा होकर खुश । जीत गया कछुआ राजा ख़रगोश को हुआ दुःख। आया जंगल का राजा , कछुआ को दिया पुरस्कार । घमंडी एक खरगोश का , हो गया तिरस्कार । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा)  छत्तीसगढ़