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अभिलाषा

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अभिलाषा  ( ताटंक छन्द ) मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।  झुकने दूंगा नहीं  तिरंगा ,  मेरे मन की आशा है ।।1। नित नित वंदन करुँ मै माता,  तुम तो पालन हारी हो । कभी कष्ट ना होने देती , सबके मंगलकारी हो ।।2।। जाति धर्म सब अलग अलग पर , एक यहाँ की भाषा है । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।3।। शस्य श्यामला धरा यहाँ की , सुंदर पर्वत घाटी है । माथे अपने तिलक लगाऊँ,  चंदन जैसे माटी है ।।4।। कभी खेलते युद्ध यहाँ पर , कभी खेलते पासा हैं । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com ताटंक छंद  ( चौबोला छंद) मात्रा- - 16 + 14 = 30 पदांत में-  तीन गुरु अनिवार्य