उगता सूरज ढलता सूरज

 




"उगता सूरज ढलता सूरज" 

( सार छंद) 


उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे ।

आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।।


कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना।

सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।।


ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई।

करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।।


कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ।

होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।।


उगता सूरज ढलता सूरज,  बतलाती है नानी ।।

ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।।


रचनाकार - 

महेन्द्र देवांगन "माटी"

(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")

पंडरिया 

छत्तीसगढ़ 



Comments

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-१०-२०२०) को 'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक-३८५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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