मेरी माँ


मेरी माँ

मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।
जब भी माँगू दो रोटी तो, चार हमेशा लाती।।

भूख नहीं लगता है फिर भी,  मुझको वह खिलाती।
जाता हूँ जब घर से बाहर,  पानी जरुर पिलाती।।

सबको खाना देकर ही वह, अंतिम में ही खाती।
मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।।

किसी काम से जाता हूँ तो, मुँह मीठा कर जाती।
नजर लगे न मेरे लाल को, टीका जरुर लगाती।।

नींद कहीं जब न आये तो, लोरी रोज सुनाती।
थपकी देकर हाथों अपनी, गोदी मुझे  सुलाती।।

शिकन देखकर माथे की वह , लकीरों को पढ़ जाती।
मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।।

महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया  (कवर्धा)
छत्तीसगढ़

Mahendra Dewangan Mati 

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