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औघड़ दानी

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औघड़ दानी भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी । नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।। कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला । भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।। द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते। माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़