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Showing posts from October, 2019

दीपों का पर्व दीपावली

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दीपों का पर्व दीपावली दीपावली का नाम सुनते ही बच्चे बूढ़े सभी के मन में खुशियाँ  छा जाती है । यह त्योहार खुशियों का त्योहार है । इस त्योहार की तैयारी कई दिन पूर्व से शुरु हो जाती है । दीपावली का अर्थ  ---- दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है । दीप + अवली । दीप का मतलब होता है दीपक और अवली का अर्थ होता है कतार या पंक्ति । इसका मतलब ये हुआ कि दीपक को पंक्ति बद्ध जलाना रौशनी करना । इस दिन लोग अपने घर , द्वार,  दुकान सभी जगह बहुत सारे दीपक जलाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं । गाँव शहर सभी जगह दीपक की रौशनी से जगमगा उठता है । कब मनाया जाता है  ----- दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को मनाया जाता है । अमावस्या की काली रात में दीपक की रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है । उस दिन काली रात का पता ही नहीं चलता । असतो मा सदगमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय । अर्थात असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही मनुष्य का मुख्य लक्ष्य है । दीपावली का त्योहार इसी चरितार्थ को पूरा करता है । दीपावली क्यों मनाते हैं  ----- भगवान श्री राम चंद्र जी 14 वर्ष के व

मुनगा के गुन

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मुनगा के गुन (दोहा छंद) मुनगा मा हे गुन अबड़ , होय रोग सब दूर । ताकत मिलथे देंह ला , खावव जी भरपूर ।।1।। घर बारी अउ खेत मा , मुनगा पेड़ लगाव। बेंचव वोला गाँव मा , पइसा अबड़ कमाव।।2।। मुनगा ले औषधि बनय , आथे अब्बड़ काम। गाँव शहर मा बेंच ले , मिलही पूरा दाम।।3।। मुनगा पत्ती पीस के , सरसों तेल मिलाव। चोट मोच अउ घाव मा , येला तुरत लगाव।।4।। मुनगा पत्ती पीस के , काढ़ा बने बनाव। पीयव खाली पेट मा , गठिया रोग भगाव।।5।। मुनगा के गुन जान ले ,  छेवारी जे खाय। बीमारी सब भागथे , ताकत अब्बड़ आय।।6।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

करवा चौथ

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करवा चौथ ( सरसी छंद) आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार । करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।। पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ । मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।। करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार । आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।। रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान । उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।। छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार । भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।। सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार। आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati 

शरद पूर्णिमा मनायेंगे

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शरद पूर्णिमा मनायेंगे शरद पूर्णिमा मनायेगे, घर में खीर बनाएंगे। अमृत बरसेगा खीर में, मिल बांट कर खाएंगे।। चाँद की रौशनी से , सारा जग जगमगायेगा। सोलह कला से पूर्ण हुआ ,अमृत वह बरसायेगा।। जो जो अमृत खायेगा , बीमारी छू न  पायेगा। शीत बरसेगा धरती पर ,मोती सा बन जायेगा।। जब  बरसेगा ओस की बूंदें, ठंडी की लहरें होगी। धुंधला हो जाएगा आसमा , गीत गायेगा कोई जोगी ।। ताजा ताजा पवन चलेगा , वातावरण शुद्ध हो जायेगा । स्वस्थ रहेंगे मनुष्य सारे , हर पल खुशी मनायेगा ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

शरद पूर्णिमा

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खीर खाबो -- शरद पुन्नी मनाबो ( छत्तीसगढ़ी भाषा में) हिन्दू पंचाग के अनुसार वइसे तो हरेक महीना पुन्नी तिथि आथे , फेर शरद पुन्नी  (पूर्णिमा)  के अलग महत्व हे । ये बार शरद पुन्नी ह 13 अक्टूबर 2019 दिन रविवार के परत हे । शारदीय नवरात्रि के खतम होय के बाद कुंवार  ( आश्विन ) मास में जे पुन्नी आथे वोला शरद पुन्नी के रुप में मनाय जाथे । शरद पुन्नी ल कोजागर पुन्नी  , रास पुन्नी अउ कौमुदी पुन्नी के नाम से भी जाने जाथे । हिन्दू धर्म में येकर बहुत महत्व हे । अमृत बरसा ------- शरद पुन्नी के दिन चंदा ( चंद्रमा) ह पूरा गोल दिखाई देथे अउ आन दिन के अलावा सबले जादा चमकत रहिथे । ये दिन ऊपर से जे शीत बरसथे तेहा चंद्रमा के किरण से अमृत के समान हो जाथे । जेहा आदमी के स्वास्थ्य बर बहुत लाभदायक होथे । येकर सेती शरद पुन्नी के दिन खीर बना के छत के ऊपर खुले आसमान में टाँगे जाथे । ये खीर ल खाय से बहुत अकन असाध्य रोग ह दूर हो जथे अउ आदमी के उमर ह बढ़ जथे । पौराणिक मान्यता  ------- पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ह गोपी मन के संग वृंदावन के निधिवन में इही दिन रास लीला रचाय रिहिसे । कहे ज

आ जाओ साजना

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चित्र आधारित दोहे आ जाओ साजना नदी किनारे बैठकर , ताँक रही हूँ राह । कब आओगे साजना , भरती हूँ मैं आह ।। प्रेम लगन की आग से , जलती हूँ दिन रात । आ जाओ अब पास में  , कर लूं तुमसे बात ।। पथराई अब आँख हैं  , तोड़ो मत तुम आस । वर्षा कर दो प्रेम की , बुझ जाये सब प्यास ।। पायल बैरी पाँव में  , करती है झंकार । चूड़ी खनके हाथ में  , मत कर तू इंकार ।। ना माँगू मैं साजना , कोई मोती हार । बाँह पकड़ कर थाम लो , विनती बारंबार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

गाँधी जी के बंदर

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गाँधी जी के बंदर गाँधी जी के तीनों बंदर , बहुते धूम मचाते थे । उछले कूदे डंगालों पर , सबको नाच दिखाते थे ।। इस डाली से उस डाली पर , कूद कूद कर जाते थे । खट्टे मीठे फलें देखकर,  खूब मजे से खाते थे ।। बच्चे उसको बहुत सताते , मार गुलेल भगाते थे । इधर उधर सब भागा करते, खूब छलांग लगाते थे ।। बंदर बोले सुन लो बच्चों,  बात ज्ञान की कहता हूँ । गाँठ बाँध कर इसे पकड़ लो , कैसे मैं चुप रहता हूँ ।। करो नहीं तुम कभी बुराई , आपस में मिलकर रहना । सत्य मार्ग पर चलते रहना , झूठ कभी ना तुम कहना ।। बुरा न देखो बुरा न सुनना , बुरा नहीं तुम बोलो जी । अडिग रहो तुम सत्य मार्ग पर , आँखें अपनी खोलो जी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com