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Showing posts from June, 2020

शिक्षा दान

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शिक्षा दान (दोहे) जाओ शाला रोज के, तभी मिलेगा ज्ञान । नाम करो इस देश का,बनो सभी विद्वान ।। शिक्षा धन अनमोल है,  कीमत इसकी जान। नहीं होय शिक्षा बिना, मानुष का सम्मान ।। मिले कहीं भी ज्ञान तो,  बैठो उसके पास। सुनो ध्यान से बात को, मन में रखकर आश।। भेदभाव को छोड़ कर,  बाँटो सब में ज्ञान । जो बाँटे हैं ज्ञान को , बने वही विद्वान ।। शिक्षा दान अमोल है, मन में खुशियाँ लाय। बाँटो जितना ज्ञान को , उतना बढ़ता जाय।। बनो नहीं कंजुस कभी,  खुलकर बाँटो ज्ञान । इधर उधर सब छोड़कर, पुस्तक पर दो ध्यान ।। पढो लिखो सब प्रेम से, बन जाओ विद्वान । खोज करो हर रोज सब,ज्ञान और विज्ञान ।। कर लो शिक्षा दान सब, कर्म करो यह पुण्य । मिले शांति मन को तभी, नहीं रहेगा शून्य ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

बरखा रानी आई है

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बरखा रानी आई है (ताटंक छंद) गड़गड़ गरजे आसमान से,  घोर घटा भी छाई है। छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है।। झूम उठी है धरती सारी, पौधे सब मुस्काये हैं । चहक उठी है चिड़िया रानी,  भौंरा गाना गाये हैं ।। ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो,  हरियाली अब छाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी  आई है।। लगे छलकने ताल तलैया , पोखर सब भर आये हैं । कलकल करती नदियाँ बहती,  झरने गीत सुनाये हैं ।। चमक चमक कर बिजली रानी,  नया संदेशा लाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। खुशी किसानों की मत पूछो,  अब तो फसल उगाना है। नये तरीकों से खेतों में,  नई क्रांति अब लाना है।। माटी की है महक निराली, फसलें भी लहराई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendradewanganmati@gmail.com

सपने

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बंद नयन के सपने मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

चीन को ललकार

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चीन को चेतावनी (लावणी छंद) आँख दिखाना छोड़ो हमको, नहीं किसी से डरते हैं । हम भारत के वीर सिपाही, कफन बाँध कर लड़ते हैं ।। एक कदम तुम आगे आओ, पैर काट कर रख देंगे। वतन बचाने के खातिर हम,इतिहास नया लिख देंगे।। चलो नहीं अब चाल चीन तुम, हमसे जो टकराओगे। याद करोगे नानी अपनी, पाछे फिर पछताओगे ।। छोटी छोटी आँखें तेरी,  बिल्ली जैसी लगते हो। हाथ मिलाकर भारत से तुम, गद्दारी ही करते हो।। व्यर्थ नहीं जायेगा अब ये , वीरों की यह बलिदानी। बदला लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं मिलेगा अब पानी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

आया नया सवेरा

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आया नया सवेरा (दोहा) नया सवेरा आ गया , सबको करुं प्रणाम। आओ मिलजुल कर करें , पूरा हो सब काम।। फूल खिले हैं बाग में , भौरें भी मँडराय । नया सबेरा छा गया , पंछी गाना गाय।। निकला सूरज भोर में , सारा जग चमकाय। नदियाँ कल कल बह रही , झरनें भी लहराय।। धरती माता हँस रही , पत्ते शोर मचाय। तितली रानी उड़ रही , बागों पर इठलाय।। कोयल कूके पेड़ में , मीठी गीत सुनाय। ताजा ताजा फल लगे , सारे मिलकर खाय।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dwangan Priyu

सुरतांजलि

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सुरतांजलि लक्ष्मण मस्तुरिया सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव। छत्तीसगढ़ के मयारु बेटा,  तोला माथ नवावँव।। जनम धरे तैं मस्तुरी म , मस्तूरिहा कहाये। बचपन बीतिस खेलकूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।। तोर गीत हा सुघ्घर लागे, जन मन मा बस जाथे। संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।। अमर करे तैं नाम इँहा के,  माटी के तैं हीरा। गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैंहर पीरा।। अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी। सब ला मया लुटाये तैंहर, हरिशचंद कस दानी।। छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तैं बोंये। सुरता करके आज सबोझन,  अंतस ले गा रोये।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati