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बगिया

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  "बगिया" फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये। मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।। सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये। रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।। सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते। बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।। बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते। पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।। सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ। महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।। रचनाकार  महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

गोबर बिने बर जाबो

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  "गोबर बिने बर जाबो" (सार छंद) चलो बिने बर जाबो गोबर, झँउहा झँउहा लाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सुत उठ के बड़े बिहनिया ले, बरदी डाहर जाबो। पाछू पाछू जाबो तब तो , गोबर ला हम पाबो ।। गली गली में घूम घूम के,  गोबर रोज उठाबो । बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। दू रुपिया के भाव बेचबो , कारड मा लिखवाबो। कुंटल कुंटल बेच बेच के, हफ्ता पइसा पाबो ।। छोड़ सबो अब काम धाम ला, गोबर के गुण गाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सेवा करबो गौ माता के,  तब तो गोबर देही। सुक्खा कांच्चा सब गोबर ला, शासन हा अब लेही।। रचनाकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया कबीरधाम  छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

उगता सूरज ढलता सूरज

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  "उगता सूरज ढलता सूरज"  ( सार छंद)  उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे । आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।। कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना। सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।। ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई। करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।। कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ। होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।। उगता सूरज ढलता सूरज,  बतलाती है नानी ।। ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।। रचनाकार -  महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  छत्तीसगढ़ 

नदियाँ

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  नदियाँ (सार छंद) *************** कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचना:- महेन्द्र देवांगन *माटी*  प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*) पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़