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अमृत ध्वनि छंद

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अमृत ध्वनि छन्द (1) आइस सावन झूम के, दिखय घटा घनघोर । बिजुरी चमके जोर से, नाचय वन मा मोर ।। नाचय वन मा , मोर पंख ला, अपन उठाके, देखय सबझन, आँखी फारे, हँसय लुकाके । चिरई चिरगुन, ताली पीटे, दादुर  गाइस, सबके मन मा, खुशी समागे, सावन आइस । (2) नाँगर बइला फाँद के,  जोंतत खेत किसान । खातू कचरा डार के,  बोंवत हावय धान ।। बोंवत हावय , धान पान हा , एसो होही, पउर साल के, रोना अब तो, नइ तो रोही । करथे सबझन, काम बरोबर, चलथे जाँगर, कोड़ा देवय , दवई डारय , फाँदय नाँगर । (3) गुटका पाउच खाय जे , होथे अब्बड़ रोग । खाथे जेहा रोज के, भुगते अइसन लोग ।। भुगते अइसन, लोग मुँहू मा , केंसर होथे, पइसा खोथे,  पीरा करथे,  अब्बड़ रोथे । झगरा होथे,  गारी खाथे, सहिथे मुटका , बात मान ले , कान पकड़ ले , झन खा गुटका । (4) घर के अँगना मा सबो , तुलसी पेड़ लगाव । पानी देवव रोज के,  शुद्ध हवा ला पाव ।। शुद्ध हवा ला , पाव बिमारी, नइ तो आवय, सरदी खाँसी, भगा जथे जे, पत्ती खावय । दीया बारव, पूजा कर लो, पाँव पर के, अब्बड़ गुन हे, एला जानव, तुलसी घर के । (5) पीना छोड़व दारु ला , करथे येहा नाश । जाब