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Showing posts from December, 2020

बगिया

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  "बगिया" फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये। मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।। सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये। रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।। सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते। बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।। बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते। पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।। सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ। महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।। रचनाकार  महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

कातिक पुन्नी

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  *कातिक पुन्नी* कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे। हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।। बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे। हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे।। महादेव के पूजा करके,  जयकारा ल लगावत हे। गीत भजन अउ रामायण के,  धुन हा अबड़ सुहावत हे।। दरशन करके महादेव के, माटी तिलक लगावत हे। बेल पान अउ नरियर भेला, श्रद्धा फूल चढ़ावत हे।। मनोकामना पूरा होही , जेहा दरशन पावत हे । कर ले सेवा साधु संत के, बइठे धुनी रमावत हे।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़