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Showing posts from June, 2018

आओ पेड़ लगायें

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आओ पेड़ लगायें चलो चलें एक पेड़ लगायें,  धरती में खुशहाली लायें । पेड़ लगाकर घेरा बनायें,  गाय बकरी से उसे बचायें । सुबह शाम हम पानी डालें,  सुरक्षा का उपाय अपना लें । धीरे धीरे पेड़ बढ़ेंगे,  मैना गिलहरी उस पर चढेंगे । सबको मिलेगी शीतल छाँव,  सुंदर दिखेगा मेरा गाँव । फल फूल भी रोज मिलेगा,  सबका मन खुशी से खिलेगा । कभी नही इसको काटेंगे , फल फूल को रोज बाँटेंगे । हो हमारे सपने साकार,  पेड़ जीवन का है आधार । रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी " पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

बरस जा बादर

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बरस जा बादर , गिर जा पानी, देखत हावन । तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन । आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे । गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे । सुक्खा हावय, खेत खार हा,  कइसे बोवन । बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन । झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन । सबो किसान के,  सुसी बुता दे, पाँव परत हन । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati

योग करो

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योग करो *********** योग करो भई योग करो , सुबे शाम सब योग करो । मिल जुल के सब लोग करो , ताज़ा हवा के भोग करो । योग करो भई योग करो  ।। जल्दी उठ के दंउड लगाओ, आगे पीछे हाथ घुमाओ । कसरत अऊ दंड बैठक लगाओ , शरीर ल निरोग बनाओ । प्राणायाम अऊ ध्यान करो । योग करो भई योग करो ।। सुबे शाम सब घुमे ल जाओ , शुद्ध हवा ल रोज के पाओ । ताजा ताजा फल ल खाओ , शरीर ल मजबूत बनाओ । नियम संयम के पालन करो , योग करो भई योग करो ।। जेहा करथे रोज के योग , वोला नइ होवय कुछु रोग , उमर ओकर बढ़ जाथे , हंसी खुशी से दिन बिताथे । रोज हाँस के जीये करो । योग करो भई योग करो ।। रात दिन के चिंता छोड़ , योग से अपन नाता जोड़ । नशा पानी ल तैंहा छोड़ , बात मान ले तैंहा मोर । लइका सियान सब लोग करो , योग करो भई योग करो ।। योग करो भई योग करो सुबे शाम सब योग करो ................. महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati Pandaria @

चोका

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चोका / हाइकु (1) *पेड़ लगाओ* पेड़ लगाओ हरा भरा बनाओ खुशी मनाओ ताजा फल को खाओ । शुद्धता लाओ प्रदुषण भगाओ । स्वस्थ जीवन पेड़ों से होती वर्षा जीवनाधार संतुलित आहार । ताजगी पाओ वृक्ष सभी लगाओ खुशी के गीत गाओ । (2) *फूल* खिलते फूल कलियाँ मुस्कुराये उड़ते धूल प्रदुषण फैलाये । तितली आई सब गुनगुनाये महके फूल बागों में होते शोर वन मा नाचे मोर । (3) *बसंत* आया बसंत खिलते तन मन खुशी अनंत जिसका नहीं अंत । कोयल गाये मन खुशी समाये पत्ते खड़के मन मेरा धड़के । आया संदेश मौसम भी सुहाना प्यारा लगे गाना । (4) *पक्षी* पक्षी चहके मुंडेर पर आये दाना चुगते गीत गुनगुनाये । बच्चों को भाये दिन भर फुदके आकाश चूमें उड़ना भी सीखाये नहीं थकते हरदम उड़ते तिनका लाती घोसला भी बनाती मेहनत करती । (5) *नेता* देश का नेता खादी है पहचान पहने टोपी काम का पैसा लेता । सेवा करते जेब पूरा भरते दाँत दिखाते आगे पीछे घुमाते । देश को लूटे करते वादा झूठे करम फूटे लोगों को तरसाते कभी नहीं बनाते । (6) *मजदूर* रोटी खातिर मेहनत करते सुबह जाते दिन ढले ही आते । माथ पसीना

पिता

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पिता (हाइकु विधा ) पिता महान दुख दर्द सहते सारा जहान । दबे हैं  बोझ जिम्मेदारी निभाते सुख की खोज । बच्चे सीखते ऊँगली पकड़ के पिता सीखाते । करें नमन अपने पिताजी का हर्षित मन । सबसे बड़ा है घर का मुखिया जिम्मेदारियाँ । *महेन्द्र देवांगन* *माटी* *पंडरिया कबीरधाम* छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendradewanganmati@gmail.com

पेड़ लगाव

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पेड़ लगाव सबझन पेड़ लगाव जी, मीठा फल ला पाव जी । जतन करव तुम रोज के, पानी डारव खोज के ।। मिलही सब ला छाँव जी, सुंदर दिखही गाँव जी । जरय नहीं तब पाँव जी, होही तुहँरे नाँव जी ।। कौंवा करही काँव जी, चिरई चिरगुन चाँव जी । पहुना आही गाँव जी, सुरताही वो छाँव जी ।। शुद्ध हवा ला पाव जी, अब्बड़ पेड़ लगाव जी । ताजा फल ला खाव जी, पहिली पेड़ लगाव जी ।। महेन्द्र देवांगन माटी      पंडरिया छत्तीसगढ़ @Mahendra Dewangan Mati

कीरा मकोड़ा

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कीरा मकोड़ा *********** संझा के बेरा मा , कीरा मकोड़ा आथे । दीया हा बरत रहिथे, उही मा आके झपाथे । रंग रंग के कीरा मकोड़ा , अब्बड़ उड़ाथे । एको ठन ला रमंज देबे , बिक्कट बस्साथे । खाय पीये के बेरा मा , तीरे तीर मा आथे । कतको तोपे रहिबे तभो , भात मा गिर जाथे । हाथ गोड़ मा रेंगत रहिथे, चुट चुट चाबथे । एको ठन खुसर जथे , अब्बड़ गुदगुदासी लागथे । तोप ढाँक के रखव सँगी , कीरा मकोड़ा झन परे। खाय पीये के चीज मा , कीरा हा मत मरे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @Mahendra Dewangan Mati

किसानी के दिन

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किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब , नाँगर धरे किसान । खातू कचरा डारत हावय , मिल के दूनों मितान । गाड़ा कोप्पर टूटहा परे , वोला अब सिरजावे । खूंटा पटनी छोल छाल के, कोल्लर ला लगावे । एसो असकूड़ टूटे हावय , नावा ले के लाये । ढील्ला हावय चक्का दूनों, बाट ला चढ़ाये । पैरा भूसा बाहिर हावय , कोठार मा रखवावय । ओदर गेहे बियारा भाँड़ी , माटी मा छबनावय । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati Pandaria

हाथी

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हाथी (उल्लाला छन्द ) हाथी आइस झूम के, जंगल पूरा घूम के । लम्बा ओकर सूँड़ हे , बड़े जान जी मूड़ हे । सूपा जइसे कान हे  , खाथे अब्बड़ पान हे । पानी पीये सूँड़ मा , तिलक लगाये मूड़ मा । हाथी आये गाँव मा , लइका देखे छाँव मा । देथे सबझन दान जी, करथे ओकर मान जी । लइका मन चिल्लात हे , बाजा घलो बजात हे । पीछू पीछू जात हे , नरियर भेला खात हे । महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया Mahendra Dewangan Mati @

माटी के दोहे

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माटी के दोहे झन कर तै अभिमान जी, काम तोर नइ आय । धन दौलत के पोटली ,  संग कभू  नइ जाय ।। धन के पाछू भाग झन , माया मोह ल छोड़ । भज ले सीता राम ला , प्रभु से नाता जोड़ ।। का राखे हे देंह मा , काम तोर नइ आय । माटी के काया हरे, माटी मा मिल जाय ।। माटी के ये देंह ला , करय जतन तैं लाख । उड़ा जही जब जीव हा,  हो जाही सब राख ।। पानी के हे फोटका , ये तन ला तैं जान । जप ले हरि के नाम ला , माटी कहना मान ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati Pandaria @

कुण्डलियाँ छन्द - 2

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कुण्डलियाँ छन्द --- 2 (1) धर के नाँगर खेत मा, जावत हवय किसान । माटी चिखला गोड़ मा , ओकर हे पहिचान ।। ओकर हे पहिचान , खेत मा अन्न उगाथे, सेवा करथे रोज,  तभे सब भोजन पाथे । खातू माटी धान,  सबो ला टुकना भर के, जावय खेत किसान,  खाँध मा नाँगर धर के । (2) पढ़ना लिखना छोड़ के, घूमत हे दिन रात । मोबाइल धर हाथ मा , करथे दिन भर बात ।। करथे दिन भर बात,  कहाँ के चक्कर लग गे , खाना पीना छोड़,  टुरी के पाछू पर गे । समझावय माँ बाप , करम ला तैंहा गढ़ना बिगड़य टूरा आज,  छूट गे लिखना पढ़ना । (3) गिल्ली डंडा छूट गे , आ गे अब किरकेट । भौंरा बाँटी के जगा , लेवत हावय बेट ।। लेवत हावय बेट , पुराना खेल नँदागे, बिल्लस फुगड़ी रेल , कहाँ अब सबो भगागे । खेलव देशी खेल,  जगत मा गाड़व झंडा, होवय जग मा नाम, भूल झन गिल्ली डंडा । (4) रोवय दाई आज जी , दुख ला कहाँ बताय । बेटा हावय चार झन , एको झन नइ भाय ।। एको झन नइ भाय ,  बहू मन गारी देवय , ताना मारय रोज,  खाय के पइसा लेवय । छाती फटगे मोर , करम मा कइसे होवय , देख विधाता आज,  कलप के दाई रोवय ।। (5) गइया राखव पाल के, आथे अब्बड़ काम । सब देव

कुण्डलियाँ छन्द -- 1

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कुण्डलियाँ (1) गरमी बाढ़त रोज के, कइसे रात पहाय । पंखा कूलर के बिना,  नींद घलव नइ आय ।। नींद घलव नइ आय , खून ला मच्छर पीये ,  हावय सब हलकान , आदमी कइसे जीये । पेड़ काट के आज , करे मनखे बेशरमी , मानत नइहे बात  , बढ़त जी हावय गरमी । (2) काटव झन अब पेड़ ला , जुर मिल सबे लगाव । मिलही सुघ्घर छाँव जी  , परियावरन बचाव ।। परियावरन बचाव , तभे गा गिरही पानी, का सोंचत हव आज  , करव झन आना कानी । सुन *माटी* के बात , आदमी ला झन बाँटव , मिलही रस फर फूल  , पेड़ कोनों झन काटव । (3) छोड़व मन के भेद ला , सबला अपने मान । बेटी बेटा एक हे , कुल के दीपक जान ।। कुल के दीपक जान , नाम ला रौशन करही , देही तोला संग  , तोर घर धन ला भरही । सुन माटी के बात , अपन मुँह ला झन मोड़व , बेटी घर के शान  , कभू झन एला छोड़व ।। (4) उठ के बिहना रोज के, जंगल झाड़ी जाय । टपके हावय पेड़ ले , मउहा बिन के  लाय ।। मउहा बिन के लाय, धरे हे ओली ओली, सँग मा तेंदू चार ,  रखे हे झोली झोली । सीधा सादा लोग,  कभू नइ खाय लूट के, हाँसत गावत रोज,  जाय जी बिहना उठ के । (5) भारत माँ के माथ ला , ऊँचा करबो आज । चाहे कुछ हो

स्वच्छता अभियान

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स्वच्छता अभियान स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ भारत अभियान । गली मोहल्ला  साफ रखो , और स्वच्छता अपनाओ । घर हो चाहे बाहर हो , कचरा मत फैलाओ । दुश्मन को दोस्त बनाओ , स्वच्छता अपनाओ । अपने मन को स्वच्छ रखो और अच्छी सोच अपनाओ। वातावरण को स्वच्छ रखने से , तन मन शुद्ध हो जायेगा। हर तरफ खुशहाली होगी , बीमारी दूर हो जायेगा। पर्यावरण को बचाना है , भारत को स्वच्छ बनाना है । स्वच्छ रखने से हर घर में , रोज खुशियाँ आयेगी । छू न सकेगी बीमारी , झट से दूर हो जायेगी। बीमारी को भगाना है स्वच्छता अपनाना है। स्वच्छ भारत अभियान चलाओ , जीवन में खुशियाँ फैलाओ । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़