औघड़ दानी
"औघड़ दानी"
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भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी ।
नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।।
कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला ।
भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।।
द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते।
माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर कृति।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी🙏🏼
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteThank you sir
Deleteसुग्घर सृजन।
ReplyDeleteThank you sir
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