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सपने

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  "सपने" मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़

प्रकृति की लीला

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प्रकृति की लीला देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है। एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।। करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है। करो प्रकृति का संरक्षण,  कहर अभी भी जारी है ।। मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे। पाशा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे ।। करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है । सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाता है ।। संभल जाओ दुनिया वालों, आई विपदा भारी है। कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati