मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
8 8 8 7 वर्ण
(1) घर चल
झट पट चल घर , फट फट मत कर
रट पट रट पट , दाई तोर आत हे ।
मट मट मट मट , टूरा करे खट पट
चट चट चट चट , मार रोज खात हे।।
काम बुता करे नहीं, लइका ला धरे नहीं,
नशा पान रोज करै , घूम घूम खात हे।
संगी साथी छूट गेहे, मया नाता टूट गेहे,
रात दिन ताश खेले, जुँवा ठौर जात हे।।
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(2) कोरोना
जब ले आहे कोरोना, सब ला होगे गा रोना,
देश परदेश अब, सबो जग छाय हे।
करे कोई करनी ला, भरे कोई भरनी ला,
आनी बानी साग खाये , बीमारी हा आय हे।
बगरे हे सबो कोती, जावौ झन एती वोती,
बीमारी के इलाज ला, अभी नइ पाय हे।
भागही कोरोना जब, नइ परै रोना तब,
गारी देवै सबोझन, कोन बैरी लाय हे।।
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(3) बरसात
गड़ गड़ गरजत, झम झम बरसत,
बिजली हा चमकत, बरसात आत हे।
करा पानी रोज गिरै, नोनी बाबू सबो बीनै,
पच पच कूदै टूरा , चिखला मतात हे।
गाँव गली खेत खार, पानी चलै धारे धार,
गर गर गर गर , रेला हा बोहात हे।
नदी नाला भरे हावै , देखे बर सबो जावै,
टर टर टर टर , मेचका टर्रात हे ।।
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(4) मजदूर
सुत उठ काम करे, रापा गैंती हाथ धरे,
माटी कोड़े रात दिन, खेत रोज जात हे।
घाम करे राँय राँय , हवा चले साँय साँय ,
चट चट पाँव जरे , तभो ले कमात हे।
पथरा पहाड़ फोरे , बड़का चट्टान टोरे ,
नदी नाला बाँध अब , पुलिया बनात हे।
देखे नहीं घाम छाँव , बड़े छोटे सबो गाँव,
पेट खातिर रोज के , पसीना बोहात हे।।
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(5) फूल फूले
फूल फूले लाल लाल, झूमे संगी डार डार,
आनी बानी रंग हावै, सबो ममहात हे।
उड़ उड़ भौंरा आय, सूंघ सूंघ भाग जाय,
रस पीये मौज करे, बड़ इतरात हे।।
टोरे बर मन करे, चुन चुन फूल धरे,
देखे गोरी पतरेंगी , मन ललचात हे।
घेरी बेरी पाटी मारे, कंघी करे खोपा डारे।
गुँथ गुँथ मोंगरा ला , गजरा लगात हे।।
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(6) दारु भट्ठी
दारु भट्टी खुले हावै , छोटे बड़े सबो जावै,
बिहना ले सुत उठ , लाइन लगाय हे।
खड़े हावै तीरे तीर , लगे हावै जादा भीड़,
धक्का मुक्की होय संगी, पुलिस भगाय हे।
कोनों लेवै अद्धी पौवा , पैसा देवै सौवा सौवा,
चुपचाप झोला धरे, नइ तो बताय हे।
चढ़े हावै नशा भारी, रंग रंग देवै गारी,
घर आके बाई संग , झगरा मताय हे।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
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