बासन्ती रँग
बासन्ती रँग
हुआ भोर अब देखो प्यारे, पूर्व दिशा लाली छाई।
लगे चहकने पक्षी सारे, गौ माता भी रंभाई।।
कमल ताल में खिले हुए हैं, फूलों ने ली अँगड़ाई।
मस्त गगन में भौंरा झूमे, तितली रानी भी आई।।
सरसों फूले पीले पीले, खेतों में अब लहराये।
कूक उठी है कोयल रानी, बासन्ती जब से आये।।
है पलाश भी दहके देखो, आसमान में रँग लाई।
पढ़े प्रेम की पाती गोरी, आँचल अपनी लहराई।।
दिखे प्रेम का भाव अनोखा, सुंदर चिकने गालों में ।
झूम रही है सांवल गोरी, गजरा डाले बालों में ।।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
(फोटो गुगल से साभार)
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