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नवा साल मुबारक हो

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नवा साल मुबारक हो ****************** बड़े मन ल नमस्कार, अऊ जहुंरिया से हाथ मिलावत हों । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । पढहैया के बुद्धि बाढहे , होवय हर साल पास । कर्मचारी के वेतन बाढहे , बने आदमी खास । नेता के नेतागिरी बाढहे , दादा के दादागिरी । मिलजुल के राहव संगी , झन होवव कीड़ी बीड़ी। बैपारी के बैपार बाढहे , जादा ओकर आवक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । किसान के किसानी बाढहे , राहय सदा सुख से। मजदूर के मजदूरी बाढहे , कभू झन मरे भूख से । कवि के कविता बाढहे , लेखक के लेखनी । पत्रकार के पत्र बाढहे , संपादक के संपादकी । छोटे छोटे दुकानदार मन के, धन के सदा आवक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । प्रेमी ल प्रेमिका मिले,  बेरोजगार ल रोजगार । रेंगइया ल रददा मिले , डुबत ल मददगार । बबा ल नाती मिले , छोकरा ल छोकरी । पढ़े लिखे जतका हाबे , सब ल मिले नौकरी । अच्छा अच्छा दिन गुजरे,  ये साल ह लाभदायक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । रचना महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

माटी के दीया जलावव

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माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव। माटी के दीया  ........................ बइठे हे कुमहारिन दाई, देखत हाबे रसता । राखे हाबे माटी के दीया, बेचत सस्ता सस्ता । का सोंचत हस ले ले संगी, घर घर  में बगरावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव झालर मालर छोड़ो संगी, दीया ल बगरावव। माटी के दीया जलाके संगी, लछमी दाई ल बलावव । घर में आही सुख सांति, जुर मिल तिहार मनावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल से होवत हाबे, जन धन सबमे हानि । हमर देस में बिकरी करके, करत हे मनमानी । आंख देखावत हमला ओहा, वोला तुम दुतकारव माटी के दीया जलावव संगी,माटी के दीया जलावव । आवत हे देवारी तिहार, घर कुरिया ल लीपावव । गली खोर ल साफ  रखो, स्वच्छता के संदेश लावव। ओदरत हाबे घर कुरिया ह, सब ल तुम छबनावव। माटी के दीया जलावव संगी, अंधियारी ल भगावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati संपर्क -- 8602407353

बादर गरजत हे

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बादर गरजत हे ************** सावन भादो के झड़ी में, बादर ह गरजत हे । चमकत हे बिजली,  रहि रहि के बरसत हे । डबरा डबरी भरे हाबे , तरिया ह छलकत हे । बड़ पूरा हे नदियाँ ह जी , डोंगा ह मलकत हे । चारों कोती खेत खार , हरियर हरियर दिखत हे। लहलहावत हे धान पान, खातू माटी छींचत हे । सब के मन झूमत हाबे, कोयली गाना गावत हे। आवत हाबे राखी तिहार, भाई ल सोरियावत हे। घेरी बेरी बहिनी मन , सुरता ल लमावत हे । आही हमरो भइया कहिके, मने मन मुसकावत हे। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"  Priya dewangan priyu