बीमारी के रोना
बीमारी के रोना
बीमारी के सब रोना हे।
आ गे अब कोरोना हे।
मुहूँ कान ला बाँधे राहव।
बार बार अब धोना हे।।
धुरिहा धुरिहा घुँच के राहव।
मया पिरित नइ खोना हे।
जींयत रहिबो दुनिया में ता ।
प्रेम बीज ला बोना हे।।
सबो जगा बगरे बीमारी ।
बाँचे नइ गा कोना हे।
सवधानी सब बरतो भैया ।
जिनगी भर अब ढोना हे।।
हाँसत खेलत दिन बीताबो।
फोकट के नइ रोना हे।
ये माटी के सेवा करके।
करजा सबो चुकोना हे।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़़
बीमारी के सब रोना हे।
आ गे अब कोरोना हे।
मुहूँ कान ला बाँधे राहव।
बार बार अब धोना हे।।
धुरिहा धुरिहा घुँच के राहव।
मया पिरित नइ खोना हे।
जींयत रहिबो दुनिया में ता ।
प्रेम बीज ला बोना हे।।
सबो जगा बगरे बीमारी ।
बाँचे नइ गा कोना हे।
सवधानी सब बरतो भैया ।
जिनगी भर अब ढोना हे।।
हाँसत खेलत दिन बीताबो।
फोकट के नइ रोना हे।
ये माटी के सेवा करके।
करजा सबो चुकोना हे।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़़
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद अग्रवाल जी
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