बासी ( चौपई छंद)

बासी खा ले मिरचा संग । झन करबे तै मोला तंग ।।
बढ़ जाही रे तोर उमंग । करबे झन काँही उतलंग ।।

खा ले बासी बिहना बोर । मुनगा संग बरी के झोर ।।
राँधे हावय दाई तोर । फोकट के झन दाँत निपोर ।।

बिहना ले उठथे मजदूर । खा के बासी जाथे दूर ।
चटनी अउ आमा के कूर । मेहनत करय तब भरपूर ।।

अब्बड़ परत हवय जी  घाम । चट चट जरही सबके चाम ।।
खा के बासी करबे काम। सिरतो मा मिलही आराम।

खावय जे बासी अमचूर । पाय विटामिन वो भरपूर ।।
बीमारी सब होवय दूर ।  होवय नहीं कभू मजबूर ।।

बासी खावय हमर सियान । बाँटय वोहर सबला ज्ञान ।।
लइका मन बर देवय ध्यान । सबझन के करथे कल्यान ।।

खावय चैतू चाँटय हाथ । भोंदू देवय वोकर साथ ।।
पकलू देखय पीटय माथ । अक्कल दे दे भोलेनाथ ।।

बासी खावत "माटी "आज । डारे हावय मिरचा प्याज ।।
खाये मा हे काबर लाज । चटनी बासी सबके ताज ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati

चौपई छंद
विधान  -- 15 , 15 = 30 मात्रा
चरन -- 4
पदांत --- गुरु लघु
शुरुवात द्वि कल से होना चाहिये ।

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