नदियाँ
नदियाँ
( सार छंद)
कलकल करती नदियाँ बहती , झरझर करते झरने ।
मिल जाती हैं सागर तट में , लिये लक्ष्य को अपने ।।
सबकी प्यास बुझाती नदियाँ , मीठे पानी देती ।
सेवा करती प्रेम भाव से , कभी नहीं कुछ लेती ।।
खेतों में वह पानी देती , फसलें खूब उगाते ।
उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।।
स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती ।
विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।।
गंगा यमुना सरस्वती की , निर्मल है यह धारा ।
भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।।
विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते ।
माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।।
शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ ।
पावन इसके रज कण को मैं , माथे तिलक लगाऊँ ।।
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
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