मोर ( मयूर)


घोर घटा जब नभ में छाये , अंधकार छा जाता है ।
बादल गरजे बिजली कड़के , मोर नाचने आता है ।।
जंगल में यह दृश्य देखकर  , मन मयूर खिल जाता है ।
खुश हो जाते जीव जंतु सब  , भौरा गाने गाता है ।
पंखो को फैलाये ऐसे , जैसे चाँद सितारे हों ।
आसमान पर फैले जैसे  , टिम टिम करते तारें हों ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
8602407353

ताटंक छंद
नियम  --
मात्रा  -- 16 + 14 = 30
पदांत -- तीन  गुरु अनिवार्य

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