अगहन बिरसपति
अगहन बिरसपति के पूजा
हिन्दू पंचाग मा अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक मास के बाद अगहन मास में बिरस्पत (गुरुवार) के दिन अगहन बिरसपति के पूजा करे जाथे।
बिरसपति देव के पूजा करे ले घर मा सुख शांति, समृद्धि, धन वैभव अउ सबो मनोकामना पूरा हो जाथे।
पूजा के तैयारी ------- अगहन बिरसपति पूजा के तैयारी ल बुधवार के साँझकुन ले ही शुरु कर देथे। सबले पहिली घर दुवार , अँगना , खोर ला बढ़िया लीप बहार के साफ सुथरा करे जाथे। घर के बाहिर दरवाजा मा बढ़िया रंगोली बनाय जाथे। घर मा लक्ष्मी माता के आसन बनाय जाथे। लक्ष्मी दाई के पाँव बनाय जाथे। घर ल तोरण पताका से सजाय जाथे।
लक्ष्मी माता के आसन ------- अगहन बिरसपति के दिन बृहस्पति देव अउ लक्ष्मी माता के चित्र आसन मा रखे जाथे।
आसन के तीर मा रखिया, अँवरा (आँवला), अँवरा के डारा, केरा पत्ती, धान के बाली आदि सामान रखे जाथे।
ये पूजा मा रखिया अउ अँवरा के बहुत महत्व हे।
एकर अलावा गेंदा के फूल, पीला चाँऊर , चना ,पीला कपड़ा अउ मीठा पकवान रखे जाथे।
पूजा के बाद मँझनिया (दोपहर) कुन कथा सुने जाथे तभे पूजा पूरा होथे।
पूजा पाठ करे के बाद प्रसाद बाँटे जाथे ।
बिरसपति देव के कथा ------- बहुत दिन के बात हरे। एक राज्य मा एक बहुत प्रतापी अउ दानी राजा राज करत रिहिसे । वोहा रोज गरीब मन ल दान देवय अउ ओकर सहायता करे। फेर ये बात ह रानी ल अच्छा नइ लगत रिहिसे ।।वोहा न तो कभू दान देवय न काकरो सहायता करे।
एक दिन राजा ह शिकार करे बर जंगल गे रिहिसे , उही बेरा भगवान बृहस्पति देव ह साधु के भेष मा महल मा भिक्षा माँगे बर आइस। रानी ह भिक्षा देबर इंकार कर दीस, अउ बोलथे -- हे साधु महराज मेहा तो राजा के दान पून करे ले तंग आ गे हँव। रोज के रोज दान करत रहिथे। आप ह मोला कुछु अइसे उपाय बतावव जेकर से ये सब धन दौलत ह खतम हो जाये। न रहे बाँस न बजे बाँसुरी । ताकि मेंहा चैन से रहि सँकव।
साधु महराज बोलथे --- रानी तेंहा तो अजीब बात करत हस। आज तक तो कोनों धन दौलत से दुखी नइ होय हे। फेर ते तो उल्टा बोलत हस।
रानी बोलीस के- --' हाँ महराज मँय सचमुच में तंग आ गे हँव।
तब साधु महराज बोलथे कि ------ अइसे करबे बिरस्पत के दिन घर ल लीपबे पोतबे, पीला माटी से केश धोबे, माँस मदिरा के सेवन करबे, धोबी ल कपड़ा धोय बर देबे। अइसे करे ले सब धन ह नष्ट हो जाही।
जइसे ही साधु महराज गीस रानी ह ओइसने करे ल धर लीस। बिरस्पत के दिन माँस मदिरा खाय के शुरु कर दीस। धीरे धीरे सब धन दौलत कम होय ल धर दीस। तीन बिरस्पत बीते के बाद राजा के सबो धन नष्ट हो गे। राजा रानी के ऊपर भारी विपत्ती आ गे। राजा रानी बहुत गरीब हो गे। खाय पीये बर तरसे लगीस।
ये सब ल देख के राजा ह काम करे बर दूसर देश चल दीस।
एक दिन रानी ह अपन दासी ल बोलीस के पास के नगर मा मोर बहिनी रहिथे। वोहा अब्बड़ धनवान हे। ओकर तीर ले कुछ अनाज माँग के ले आतेस त हमर कुछ दिन के गुजर बसर चल जाही।
दासी ह ओकर बात मान के रानी के बहिनी के घर मा गीस। वो दिन बिरस्पत रिहिसे । रानी के बहिनी बृहस्पति देव के कथा सुनत रिहिसे ।
दासी ह रानी के संदेश ल ओकर बहिनी ल बताइस। फेर ओकर बहिनी ह कुछु जवाब नइ दीस।
दासी ह वापिस आ के रानी ल बताइस। रानी ह बहुत दुखी होइस।
रानी के बहिनी ह पूजा पाठ पूरा करके जब उठीस त ओहा सीधा रानी के महल मा गीस, अउ बोलीस -- मेंहा बृहस्पति देव के कथा सुनत रेहेंव तेकर सेती दासी ले कुछु नइ बोलेंव। का बात हे अब बता। दासी काबर गे रिहिसे?
तब रानी ह अपन बहिनी ल सब बात ल बताइस अउ दुख ल सुनाइस।
तब रानी के बहिनी ह बृहस्पति देव के पूजा करे के सलाह दीस अउ सब विधि -विधान ला बताइस।
रानी ह ओकर बात मान के बृहस्पति देव के विधि - विधान से पूजा करे ल धरलीस। धीरे- धीरे ओकर घर मा धन संपत्ति बाढत गीस। कुछ दिन बाद राजा भी घर मा आ गे। अब राजा अउ रानी सुख से रहे ला धर लीस। फिर से दान पुन करे ला धर लीस।
ये कथा ला सुने से सब प्रकार के मनोकामना पूरा होथे , अउ घर मा लक्ष्मी के वास होथे।
बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ।
लेख
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
हिन्दू पंचाग मा अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक मास के बाद अगहन मास में बिरस्पत (गुरुवार) के दिन अगहन बिरसपति के पूजा करे जाथे।
बिरसपति देव के पूजा करे ले घर मा सुख शांति, समृद्धि, धन वैभव अउ सबो मनोकामना पूरा हो जाथे।
पूजा के तैयारी ------- अगहन बिरसपति पूजा के तैयारी ल बुधवार के साँझकुन ले ही शुरु कर देथे। सबले पहिली घर दुवार , अँगना , खोर ला बढ़िया लीप बहार के साफ सुथरा करे जाथे। घर के बाहिर दरवाजा मा बढ़िया रंगोली बनाय जाथे। घर मा लक्ष्मी माता के आसन बनाय जाथे। लक्ष्मी दाई के पाँव बनाय जाथे। घर ल तोरण पताका से सजाय जाथे।
लक्ष्मी माता के आसन ------- अगहन बिरसपति के दिन बृहस्पति देव अउ लक्ष्मी माता के चित्र आसन मा रखे जाथे।
आसन के तीर मा रखिया, अँवरा (आँवला), अँवरा के डारा, केरा पत्ती, धान के बाली आदि सामान रखे जाथे।
ये पूजा मा रखिया अउ अँवरा के बहुत महत्व हे।
एकर अलावा गेंदा के फूल, पीला चाँऊर , चना ,पीला कपड़ा अउ मीठा पकवान रखे जाथे।
पूजा के बाद मँझनिया (दोपहर) कुन कथा सुने जाथे तभे पूजा पूरा होथे।
पूजा पाठ करे के बाद प्रसाद बाँटे जाथे ।
बिरसपति देव के कथा ------- बहुत दिन के बात हरे। एक राज्य मा एक बहुत प्रतापी अउ दानी राजा राज करत रिहिसे । वोहा रोज गरीब मन ल दान देवय अउ ओकर सहायता करे। फेर ये बात ह रानी ल अच्छा नइ लगत रिहिसे ।।वोहा न तो कभू दान देवय न काकरो सहायता करे।
एक दिन राजा ह शिकार करे बर जंगल गे रिहिसे , उही बेरा भगवान बृहस्पति देव ह साधु के भेष मा महल मा भिक्षा माँगे बर आइस। रानी ह भिक्षा देबर इंकार कर दीस, अउ बोलथे -- हे साधु महराज मेहा तो राजा के दान पून करे ले तंग आ गे हँव। रोज के रोज दान करत रहिथे। आप ह मोला कुछु अइसे उपाय बतावव जेकर से ये सब धन दौलत ह खतम हो जाये। न रहे बाँस न बजे बाँसुरी । ताकि मेंहा चैन से रहि सँकव।
साधु महराज बोलथे --- रानी तेंहा तो अजीब बात करत हस। आज तक तो कोनों धन दौलत से दुखी नइ होय हे। फेर ते तो उल्टा बोलत हस।
रानी बोलीस के- --' हाँ महराज मँय सचमुच में तंग आ गे हँव।
तब साधु महराज बोलथे कि ------ अइसे करबे बिरस्पत के दिन घर ल लीपबे पोतबे, पीला माटी से केश धोबे, माँस मदिरा के सेवन करबे, धोबी ल कपड़ा धोय बर देबे। अइसे करे ले सब धन ह नष्ट हो जाही।
जइसे ही साधु महराज गीस रानी ह ओइसने करे ल धर लीस। बिरस्पत के दिन माँस मदिरा खाय के शुरु कर दीस। धीरे धीरे सब धन दौलत कम होय ल धर दीस। तीन बिरस्पत बीते के बाद राजा के सबो धन नष्ट हो गे। राजा रानी के ऊपर भारी विपत्ती आ गे। राजा रानी बहुत गरीब हो गे। खाय पीये बर तरसे लगीस।
ये सब ल देख के राजा ह काम करे बर दूसर देश चल दीस।
एक दिन रानी ह अपन दासी ल बोलीस के पास के नगर मा मोर बहिनी रहिथे। वोहा अब्बड़ धनवान हे। ओकर तीर ले कुछ अनाज माँग के ले आतेस त हमर कुछ दिन के गुजर बसर चल जाही।
दासी ह ओकर बात मान के रानी के बहिनी के घर मा गीस। वो दिन बिरस्पत रिहिसे । रानी के बहिनी बृहस्पति देव के कथा सुनत रिहिसे ।
दासी ह रानी के संदेश ल ओकर बहिनी ल बताइस। फेर ओकर बहिनी ह कुछु जवाब नइ दीस।
दासी ह वापिस आ के रानी ल बताइस। रानी ह बहुत दुखी होइस।
रानी के बहिनी ह पूजा पाठ पूरा करके जब उठीस त ओहा सीधा रानी के महल मा गीस, अउ बोलीस -- मेंहा बृहस्पति देव के कथा सुनत रेहेंव तेकर सेती दासी ले कुछु नइ बोलेंव। का बात हे अब बता। दासी काबर गे रिहिसे?
तब रानी ह अपन बहिनी ल सब बात ल बताइस अउ दुख ल सुनाइस।
तब रानी के बहिनी ह बृहस्पति देव के पूजा करे के सलाह दीस अउ सब विधि -विधान ला बताइस।
रानी ह ओकर बात मान के बृहस्पति देव के विधि - विधान से पूजा करे ल धरलीस। धीरे- धीरे ओकर घर मा धन संपत्ति बाढत गीस। कुछ दिन बाद राजा भी घर मा आ गे। अब राजा अउ रानी सुख से रहे ला धर लीस। फिर से दान पुन करे ला धर लीस।
ये कथा ला सुने से सब प्रकार के मनोकामना पूरा होथे , अउ घर मा लक्ष्मी के वास होथे।
बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ।
लेख
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com
कथा बताने के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
बहुत बढ़िया भइया जी
ReplyDeleteधन्यवाद निषाद जी
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी अऊ सुन्दर कहानी बर आप l बधाई
ReplyDeleteBhahut hi Sundar
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
Deleteजय माता दी
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