हाथी
हाथी (उल्लाला छन्द )
हाथी आइस झूम के, जंगल पूरा घूम के ।
लम्बा ओकर सूँड़ हे , बड़े जान जी मूड़ हे ।
सूपा जइसे कान हे , खाथे अब्बड़ पान हे ।
पानी पीये सूँड़ मा , तिलक लगाये मूड़ मा ।
हाथी आये गाँव मा , लइका देखे छाँव मा ।
देथे सबझन दान जी, करथे ओकर मान जी ।
लइका मन चिल्लात हे , बाजा घलो बजात हे ।
पीछू पीछू जात हे , नरियर भेला खात हे ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया
Mahendra Dewangan Mati @
वाह वाह भैया बहुत सुघ्घर
ReplyDeleteधन्यवाद नीलम जी
ReplyDeleteसुग्घर उल्लाला छन्द
ReplyDeleteआपके आशीर्वाद अउ कृपा हरे गुरुजी
Deleteसादर प्रणाम
गजब के हे बड़े भाई साहब
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
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