बरस जा बादर
बरस जा बादर , गिर जा पानी, देखत हावन ।
तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन ।
आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे ।
गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे ।
सुक्खा हावय, खेत खार हा, कइसे बोवन ।
बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन ।
झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन ।
सबो किसान के, सुसी बुता दे, पाँव परत हन ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कबीरधाम )
छत्तीसगढ़
@ Mahendra Dewangan Mati
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