कुण्डलियाँ छन्द - 2

कुण्डलियाँ छन्द --- 2
(1)
धर के नाँगर खेत मा, जावत हवय किसान ।
माटी चिखला गोड़ मा , ओकर हे पहिचान ।।
ओकर हे पहिचान , खेत मा अन्न उगाथे,
सेवा करथे रोज,  तभे सब भोजन पाथे ।
खातू माटी धान,  सबो ला टुकना भर के,
जावय खेत किसान,  खाँध मा नाँगर धर के ।
(2)
पढ़ना लिखना छोड़ के, घूमत हे दिन रात ।
मोबाइल धर हाथ मा , करथे दिन भर बात ।।
करथे दिन भर बात,  कहाँ के चक्कर लग गे ,
खाना पीना छोड़,  टुरी के पाछू पर गे ।
समझावय माँ बाप , करम ला तैंहा गढ़ना
बिगड़य टूरा आज,  छूट गे लिखना पढ़ना ।
(3)
गिल्ली डंडा छूट गे , आ गे अब किरकेट ।
भौंरा बाँटी के जगा , लेवत हावय बेट ।।
लेवत हावय बेट , पुराना खेल नँदागे,
बिल्लस फुगड़ी रेल , कहाँ अब सबो भगागे ।
खेलव देशी खेल,  जगत मा गाड़व झंडा,
होवय जग मा नाम, भूल झन गिल्ली डंडा ।
(4)
रोवय दाई आज जी , दुख ला कहाँ बताय ।
बेटा हावय चार झन , एको झन नइ भाय ।।
एको झन नइ भाय ,  बहू मन गारी देवय ,
ताना मारय रोज,  खाय के पइसा लेवय ।
छाती फटगे मोर , करम मा कइसे होवय ,
देख विधाता आज,  कलप के दाई रोवय ।।
(5)
गइया राखव पाल के, आथे अब्बड़ काम ।
सब देवन के वास हे , एहा तीरथ धाम ।।
एहा तीरथ धाम,  दूध के दही बनालव,
घी मक्खन ला खाव , बेंच के खूब कमालव ।
गोबर आथे काम,  लीपथे अँगना मइया,
लछमी एला मान,  सबो झन राखव गइया ।
(6)
चारी चुगली छोड़ के, भज ले हरि के नाम ।
दीन दुखी ला दान कर , बनही बिगड़े काम ।।
बनही बिगड़े काम,  कभू तैं दुख नइ पाबे ,
मिलही आशीर्वाद,  जगत मा नाम कमाबे ।
झन कर तैं बदनाम,  लगे हे आरी पारी ,
सबला अपने मान , छोड़ दे चुगली चारी ।
(7)
काया माटी के हरे , झन कर गरब गुमान ।
पानी के जी फोटका , एला तैंहर जान ।।
एला तैंहर जान , जगत मा नाम कमा ले ,
*छन्द के* *छ* ला सीख , ज्ञान तैं इहँचे पा ले ।
सब ला देथे ज्ञान,  गुरू के अब्बड़ माया,
पछताबे तैं बाद, होय जब माटी काया ।
(8)
चौरासी ला भोग के,  मनखे तन ला पाय ।
करबे तैंहा दान पुन , तभे काम के आय ।।
तभे काम के आय , जगत मा सेवा कर ले,
रहि जाही जी नाम , पुण्य के झोली भर ले ।
धन दौलत ला देख , आय झन गा बौरासी ,
करथे जेहा पाप ,   भोगथे वो   चौरासी ।
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया  (कबीरधाम )
छत्तीसगढ़
8602407353
@  Mahendra Dewangan Mati
        Pandaria

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