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कमरछठ तिहार

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  ( कमरछठ विशेष  ) लोग लइका बर उपास -- कमरछठ के तिहार ************************************** छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे । काबर इहाँ धान के फसल जादा होथे ।इहाँ के जादातर मनखे मन ह खेती के काम करथे । किसान मन ह अपन खेत में हरियर हरियर धान पान ल देख के हरेली तिहार मनाथे । हरेली तिहार के बाद से छत्तीसगढ़ में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे । ओमे से एक ठन तिहार कमरछठ भी हरे । कमरछठ ल महिला मन अपन लोग लइका के सुख शांति  अऊ समरिद्ध के खातिर मनाथे । भादो महिना के अंधियारी पाँख के छठ के दिन कमरछठ मनाय जाथे ।एला हलसस्ठी भी कहे जाथे । इही दिन भगवान किशन कन्हैया के बड़े भाई बलदाऊ जी के जनम होइस हे । बलदाऊ जी के शस्त्र हल अऊ मूसल हरे । इही कारन ओला हलधर भी कहे जाथे । एकरे नाम से ए तिहार के नाम हलसष्ठी परे हे । ए तिहार ल विवाहित महिला मन अपन लइका के सुख शांति अऊ समरिदधि के खातिर मनाथे । ए दिन महिला मन ह उपवास रहिथे अऊ बिना नांगर चले अन्न जेला पसहर चांउर कहिथे तेला खाथे । आज के दिन महिला मन ह बिहनिया ले जल्दी उठथे अऊ मऊहा या करंज पेड़ के लकड़ी के दतवन करथे । गांव में नाऊ मन ह बिहनिया ले घरो...

भाग्य

  "भाग्य" (सरसी छंद) भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक। कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख।। जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत। पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत।। जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम। रूख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम।। कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान। मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान।। "माटी" बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात। सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात।। रचनाकार महेंद्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

शारदे वंदन

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  "शारदे वंदन" चरण कमल में तेरे माता, अपना शीश झुकाते हैं। ज्ञान बुद्धि के देने वाली, तेरे ही गुण गाते हैं।। श्वेत कमल में बैठी माता, कर में पुस्तक रखती। राजा हो या रंक सभी का, किस्मत तू ही लिखती।। वीणा की झंकारे सुनकर, ताल कमल खिल जाते हैं। बैठ पुष्प में तितली रानी, भौंरा गाना गाते हैं।। मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे, ज्ञान बुद्धि तू देती है। शब्द शब्द में बसने वाली, सबका मति हर लेती है।। मैं अज्ञानी बालक माता, शरण आपके आया हूँ। झोली भर दे मेरी मैया, शब्द पुष्प मैं लाया हूँ।। रचनाकार  महेंद्र देवांगन "माटी" पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

सपने

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  "सपने" मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़

बगिया

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  "बगिया" फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये। मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।। सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये। रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।। सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते। बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।। बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते। पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।। सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ। महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।। रचनाकार  महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

कातिक पुन्नी

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  *कातिक पुन्नी* कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे। हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।। बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे। हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे।। महादेव के पूजा करके,  जयकारा ल लगावत हे। गीत भजन अउ रामायण के,  धुन हा अबड़ सुहावत हे।। दरशन करके महादेव के, माटी तिलक लगावत हे। बेल पान अउ नरियर भेला, श्रद्धा फूल चढ़ावत हे।। मनोकामना पूरा होही , जेहा दरशन पावत हे । कर ले सेवा साधु संत के, बइठे धुनी रमावत हे।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

सरस्वती वंदना

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  "सरस्वती वंदना"  (गीतिका छंद)  ज्ञान के भंडार भर दे , शारदे माँ आज तैं । हाथ जोंड़व पाँव परके , राख मइयाँ लाज तैं ।। कंठ बइठो मातु मोरे , गीत गाँवव राग मा । होय किरपा तोर माता,  मोर सुघ्घर भाग मा ।। तोर किरपा होय जे पर , भाग वोकर जाग थे । बाढ़ थे बल बुद्धि वोकर , गोठ बढ़िया लाग थे ।। बोल लेथे कोंदा मन हा , अंधरा सब देख थे । तोर किरपा होय माता  , पाँव बिन सब रेंग थे ।। रचनाकार महेंद्र देवांगन *माटी* पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

मुनिया रानी

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  "मुनिया रानी"  (बालगीत ) ( चौपाई छंद ) भोली भाली मुनिया रानी । पीती थी वह दिनभर पानी ।। दादा के सिर पर चढ़ जाती। बड़े मजे से गाना गाती ।। दादा दादी ताऊ भैया । नाच नचाती ताता थैया।। खेल खिलौने रोज मँगाती। हाथों अपने रंग लगाती।। भैया से वह झगड़ा करती। पर बिल्ली से ज्यादा डरती।। नकल सभी का अच्छा करती। नल में जाकर पानी भरती।। दादी की वह प्यारी बेटी । साथ उसी के रहती लेटी।। कथा कहानी रोज सुनाती। तभी नींद में वह सो जाती।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

वंदना

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  "वंदना"  (दोहा) करूं वंदना नित्य ही, हे गणनायक राज। संकट सबके टाल दो, सिद्ध होय सब काज।। काम मिले हर हाथ को, नहीं पलायन होय। भूखा कोई मत रहे, बच्चे कहीं न रोय।। कोरोना संकट हटे, बीमारी हो दूर। स्वस्थ रहे सब आदमी,  नहीं रहे मजबूर ।। भेदभाव को छोड़ कर,  रहे सभी अब साथ। नवयुग का निर्माण हों, हाथों में दें हाथ ।। करुं आरती रोज ही, आकर तेरे द्वार । करो कृपा गणराज जी,  वंदन बारंबार ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

गोबर बिने बर जाबो

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  "गोबर बिने बर जाबो" (सार छंद) चलो बिने बर जाबो गोबर, झँउहा झँउहा लाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सुत उठ के बड़े बिहनिया ले, बरदी डाहर जाबो। पाछू पाछू जाबो तब तो , गोबर ला हम पाबो ।। गली गली में घूम घूम के,  गोबर रोज उठाबो । बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। दू रुपिया के भाव बेचबो , कारड मा लिखवाबो। कुंटल कुंटल बेच बेच के, हफ्ता पइसा पाबो ।। छोड़ सबो अब काम धाम ला, गोबर के गुण गाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सेवा करबो गौ माता के,  तब तो गोबर देही। सुक्खा कांच्चा सब गोबर ला, शासन हा अब लेही।। रचनाकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया कबीरधाम  छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

उगता सूरज ढलता सूरज

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  "उगता सूरज ढलता सूरज"  ( सार छंद)  उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे । आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।। कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना। सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।। ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई। करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।। कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ। होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।। उगता सूरज ढलता सूरज,  बतलाती है नानी ।। ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।। रचनाकार -  महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  छत्तीसगढ़ 

औघड़ दानी

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  "औघड़ दानी" ************ भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी । नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।। कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला । भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।। द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते। माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।। महेन्द्र देवांगन "माटी" प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  छत्तीसगढ़

बंधन

 बंधन (ताटंक छंद) **************** जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे। कुछ भी संकट आये हम पर , कभी नहीं घबरायेंगे।। गठबंधन है सात जनम का, ये ना खेल तमाशा है । सुख दुख दोनों साथ निभाये, अपने मन की आशा है।। प्रेम प्यार के इस बंधन को, भूल नहीं अब पायेंगे। जनम जनम का बंधन है ये, हर पल साथ निभायेंगे।। महेन्द्र देवांगन "माटी" प्रेषक - (पुत्री - प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priya Dewangan Priyu

नदियाँ

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  नदियाँ (सार छंद) *************** कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचना:- महेन्द्र देवांगन *माटी*  प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*) पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन ( सरसी छंद) आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।  है अटूट नाता बहनों से   दे अनुपम  उपहार ।। राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर। खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।। सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार। है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।। हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार । रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।। राखी के इस शुभ अवसर पर,  सजे हुए हैं द्वार । है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान । वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।। आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार। है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

बीमारी के रोना

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बीमारी के रोना बीमारी के सब रोना हे। आ गे अब कोरोना हे। मुहूँ कान ला बाँधे राहव। बार बार अब धोना हे।। धुरिहा धुरिहा घुँच के राहव। मया पिरित नइ खोना हे। जींयत रहिबो दुनिया में ता । प्रेम बीज ला बोना हे।। सबो जगा बगरे बीमारी । बाँचे नइ गा कोना हे। सवधानी सब बरतो भैया । जिनगी भर अब ढोना हे।। हाँसत खेलत दिन बीताबो। फोकट के नइ रोना हे। ये माटी के सेवा करके। करजा सबो चुकोना हे।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़़ 

प्रकृति की लीला

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प्रकृति की लीला देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है। एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।। करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है। करो प्रकृति का संरक्षण,  कहर अभी भी जारी है ।। मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे। पाशा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे ।। करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है । सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाता है ।। संभल जाओ दुनिया वालों, आई विपदा भारी है। कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

शिक्षा दान

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शिक्षा दान (दोहे) जाओ शाला रोज के, तभी मिलेगा ज्ञान । नाम करो इस देश का,बनो सभी विद्वान ।। शिक्षा धन अनमोल है,  कीमत इसकी जान। नहीं होय शिक्षा बिना, मानुष का सम्मान ।। मिले कहीं भी ज्ञान तो,  बैठो उसके पास। सुनो ध्यान से बात को, मन में रखकर आश।। भेदभाव को छोड़ कर,  बाँटो सब में ज्ञान । जो बाँटे हैं ज्ञान को , बने वही विद्वान ।। शिक्षा दान अमोल है, मन में खुशियाँ लाय। बाँटो जितना ज्ञान को , उतना बढ़ता जाय।। बनो नहीं कंजुस कभी,  खुलकर बाँटो ज्ञान । इधर उधर सब छोड़कर, पुस्तक पर दो ध्यान ।। पढो लिखो सब प्रेम से, बन जाओ विद्वान । खोज करो हर रोज सब,ज्ञान और विज्ञान ।। कर लो शिक्षा दान सब, कर्म करो यह पुण्य । मिले शांति मन को तभी, नहीं रहेगा शून्य ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

बरखा रानी आई है

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बरखा रानी आई है (ताटंक छंद) गड़गड़ गरजे आसमान से,  घोर घटा भी छाई है। छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है।। झूम उठी है धरती सारी, पौधे सब मुस्काये हैं । चहक उठी है चिड़िया रानी,  भौंरा गाना गाये हैं ।। ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो,  हरियाली अब छाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी  आई है।। लगे छलकने ताल तलैया , पोखर सब भर आये हैं । कलकल करती नदियाँ बहती,  झरने गीत सुनाये हैं ।। चमक चमक कर बिजली रानी,  नया संदेशा लाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। खुशी किसानों की मत पूछो,  अब तो फसल उगाना है। नये तरीकों से खेतों में,  नई क्रांति अब लाना है।। माटी की है महक निराली, फसलें भी लहराई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendradewanganmati@gmail.com

सपने

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बंद नयन के सपने मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati