भाग्य

 

"भाग्य"

(सरसी छंद)


भाग्य भरोसे क्यों बैठे हो, काम करो कुछ नेक।

कर्म करो अच्छा तो प्यारे, बदले किस्मत लेख।।


जो बैठे रहते हैं चुपके, उसके काम न होत।

पीछे फिर पछताते हैं वे, माथ पकड़ कर रोत।।


जो करते संघर्ष यहाँ पर, उसके बनते काम।

रूख हवाओं के जो मोड़े, होता उसका नाम।।


कर्म करोगे फल पाओगे, ये गीता का ज्ञान।

मत कोसो किस्मत को प्यारे, कहते सब विद्वान।।


"माटी" बोले हाथ जोड़कर, करो नहीं आघात।

सबको अपना साथी समझो, मानो मेरी बात।।


रचनाकार

महेंद्र देवांगन "माटी"

(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")

पंडरिया

जिला - कबीरधाम

छत्तीसगढ़



Comments

  1. बहुत सुंदर सृजन बधाई

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  2. बहुत सुंदर रचना🙏🏻

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  3. बहुत ही सुंदर सृजन है माटी भैया का

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  4. बहुत ही सुंदर सृजन, आदरणीय माटी जी ला शत शत नमन

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  5. बहुत सुंदर है उत्कृष्ट रचना

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  6. सुन्दर सृजन

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  7. बहुत सुंदर गुड़िया रानी

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  8. बहुत सुंदर रचना

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