वीर नारायण सिंह


छ ग. के पहिली शहीद  -- वीर नारायण सिंह

जनम -- छत्तीसगढ़ राज के पहिली शहीद वीर नारायण सिंह हा हरे । वीर नारायण सिंह के जनम सन 1795 ई में बलौदा बजार जिला के सोनाखान नाम के एक छोटे से गाँव में होय रिहिसे । वोकर ददा (पिताजी) के नाम श्री रामराय सिंह रिहिसे ।

साहसी लइका  ------ वीर नारायण सिंह हा बचपना ले निडर अउ साहसी लइका रिहिसे । वोहर कोनों से डर्रावत नइ रिहिसे । तीरंदाजी , तलवार बाजी , अउ घुड़सवारी में घलो माहिर रिहिसे । वोहर अपन संगवारी मन ला भी ये सब ला सीखाय। ताकि मौका परे मा काम आ सके। घनघोर जंगल में घलो वोहर अकेल्ला घुमे बर चल देय।

देशभक्ति के भावना ----- वीर नारायण सिंह में देश भक्ति के भावना रग रग में भरे रिहिसे । वोहर अंग्रेज मन के विरोध में हमेशा आवाज उठाइस अउ ओकर खिलाफ आंदोलन भी करीस । ये पाय के अंग्रेज मन ओकर से बहुत चिढहे।

जनता के सेवा  ----- वीर नारायण सिंह हा जनता के सेवा करे बर हमेशा आघू राहय। वोकर से जो भी सहायता बन परे वो जरुर करय।
वीर नारायण सिंह के पास एक घोड़ा राहय । वोहर हमेशा घोड़ा में चढ़ के घुमे। एक दिन जब वोहर अपन रियासत में घूमत रिहिसे तब कुछ आदमी मन बताइस के सोनाखान इलाका में एक नरभक्षी शेर आ गेहे। वोहर बहुत आतंक मतावत हे। डर के मारे कोनों आदमी हा काम बुता में नइ जा सकत हे। तब वीर नारायण सिंह हा तुरते तलवार धर के शेर ला खोजे बर जंगल में चल दीस। जंगल में शेर ला कूदा - कूदा के मार डरीस । जनता मन बहुत खुश होइस। ओकर बहादुरी ला देख के ब्रिटिश सरकार हा अचंभा में पर गे , आउ वोला "वीर" के पदवी से सम्मानित करीस। ए सम्मान के बाद वोहर वीर नारायण सिंह के नाम से प्रसिद्ध होगे।
सन 1856 में सोनाखान में घोर अकाल पर गे। जनता मन दाना - दाना बर तरसे ला धर लीस । येती बड़े बड़े बैपारी मन अपन गोदाम में अनाज ला भरे राहय। फेर कोनों किसम के सहायता नइ करत रिहिसे । जनता मन के करलइ ला देख के वीर नारायण सिंह हा एक बैपारी माखन के तीर में सहायता माँगे बर गीस। वोहर बैपारी ले विनती करीस के गरीब किसान मन हा खाय बर तरसत हे । ओमन ला कुछ खाय बर अनाज अउ बोंये बर बीजहा दे देतेस । बैपारी हा सहयोग करे बर साफ मना कर दीस। तब वीर नारायण सिंह हा ओकर गोदाम के तारा ला टोर के सब अनाज ला किसान मन में बाँट दीस।
बैपारी माखन हा ए घटना के शिकायत वो समय के डिप्टी कमिश्नर इलियट ले कर दीस। डिप्टी कमिश्नर हा वीर नारायण सिंह के गिरफ्तारी के आदेश निकाल दीस अउ सेना ले के ओकर गाँव सोनाखान चल दीस। आसपास के इलाका अउ गाँव ला सेना मन बहुत खोज बीन करीस , फेर वीर नारायण सिंह हा नइ मिलीस। तब घुस्सा में आ के सेना मन पूरा गाँव में आगी लगा दीस। सबके घर द्वार हा आगी में जर गे। ये बात ला जानीस त वीर नारायण सिंह हा बहुत दुखी होइस अउ ब्रिटिश शासन के बहुत विरोध करीस।
24 अक्टूबर सन 1856 के संबलपुर में वीर नारायण सिंह ला गिरफ्तार कर लीस। ओकर ऊपर लूटपाट अउ डकैती के मुकदमा दायर करीस।
10 दिसम्बर सन 1857 में रायपुर के एक चौराहा जेला आजकाल जय स्तंभ चौक कहे जाथे उही जगह वीर नारायण सिंह ला फाँसी दे दीस। ओकर बाद ओकर लाश ला तोप के मुँहू में बाँध के उड़ा दीस।
ये प्रकार से भारत के एक सच्चा देशभक्त के जीवन लीला समाप्त होगे।
शहीद वीर नारायण सिंह ला छत्तीसगढ़ राज्य के पहिली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के दरजा प्राप्त हे।

संकलनकर्ता
महेन्द्र देवांगन "माटी"

( बोरसी  - राजिम)
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला  -- कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Comments

Popular posts from this blog

तेरी अदाएँ

अगहन बिरसपति

वेलेंटटाइन डे के चक्कर