सर्वगामी सवैया
सर्वगामी सवैया
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(1) जुन्ना खेल नँदागे
आ गे जमाना नवा खेल के जी पुराना सबो खेल संगी नँदागे।
जाने न जुन्ना कहाँ खेल खेले न गिल्ली न डंडा सबो हा भगागे।
कुश्ती ल जाने न मस्ती ल जाने धरे फोन हाथे म जम्मो समागे।
टी वी ल देखे मचाये ग हल्ला सबो आदमी हा उही मा झपागे।।
(2) मारे फुटानी
मारे फुटानी चलाये ग गाड़ी गिरे हाथ टूटे छिलाये ग माड़ी।
माने नहीं आज बाते ल कोनों कुदाये गली खोर जाये ग बाड़ी।
फूटे कभू माथ टूटे भले दाँत चेते नहीं वो चलाये ल गाड़ी ।
धोखा ल खाथे परे मार डंडा बचाये न कोनों जुड़ाथे ग नाड़ी।।
(3) बेटी ल जानो
बेटी ल जानो ग बेटी ल मानो कभू कोख मा आज येला न मारो।
लक्ष्मी सहीं होय बेटी ह संगी रखो प्रेम से रोज येला दुलारो।
सेवा करे रोज दाई ददा के कभू भेद जाने न चाहे ग मारो।
बेटा कभू संग देवे नहीं ता चले आय बेटी ह वोला पुकारो।।
(4) नशा छोड़ो
छोड़ो नशा पान बीड़ी ल संगी करे जेन जादा बिमारी ग होथे।
पैसा न बाँचे न कौड़ी न बाँचे मरे हाल होथे सुवारी ह रोथे।
होथे ग पीरा सबे लूट जाथे खुदे आदमी रोज काँटा ल बोंथे।
आघू न सोंचे न पाछू ल देखे नशा जेन बूड़े ग पैसा ल खोथे।।
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया कबीरधाम
छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
8602407353
2 2 1 × 7 + 2 2
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