कछुआ और खरगोश


कछुआ और खरगोश

कछुआ और खरगोश में ,
हुई दोनो में रेस ।
बहुत घमण्डी था खरगोश ,
मारता था वह टेस ।
दोनों में एक बात चली,
चलो लगाएँ रेस।

हाथी आया बंदर आया ,
आया जंगल का राजा।
चिड़िया रानी गाना गाई,
लोमड़ी बजाया बाजा।

दोनो निकल पड़े रेस में,
खरगोश दौड़ लगाया ।
धीरे धीरे कछुआ चलकर,
मंद मंद मुस्काया।

थक कर बैठा खरगोश राजा,
खाने लगा वह गाजर।
खाते खाते वहीं सो गया,
नाक बजा बजा कर।

कछुआ आया धीरे धीरे ,
देखा खरगोश को सोते।
निकल पड़ा वह आगे भैया
खुश होते होते।

नींद खुली जब खरगोश का,
फिर से दौड़ा होकर खुश ।
जीत गया कछुआ राजा
ख़रगोश को हुआ दुःख।

आया जंगल का राजा ,
कछुआ को दिया पुरस्कार ।
घमंडी एक खरगोश का ,
हो गया तिरस्कार ।

रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कवर्धा)
 छत्तीसगढ़

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