हाथी आ गे
हाथी आ गे
( कुण्डलियाँ छंद)
हाथी आ गे खेत मा , देखे पूरा गाँव ।
रौंदत हावय धान ला , दुख ला कहाँ सुनाव।।
दुख ला कहाँ सुनाव , हमर किसमत हे खोटा ।
जागत हावन आज , रात भर काँपय पोटा ।।
होगे बड़ नुकसान , रोत हे सबझन साथी ।
जंगल झाड़ी छोड़ , खेत मा आ गे हाथी ।।
जंगल झाड़ी काट के , सबझन महल बनाय ।
लाँघन मरगे जानवर , कइसे चारा पाय ।।
कइसे चारा पाय , खेत मा खोजत आवय ।
देखत हरियर खार , पेट भर चारा खावय ।।
सुन "माटी" के बात , कहाँ ले होवय मंगल ।
पछताही सब बाद , साफ होगे हे जंगल ।।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati @
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