दीपों का पर्व दीपावली




दीपों का पर्व दीपावली

दीपावली का नाम सुनते ही बच्चे बूढ़े सभी के मन में खुशियाँ  छा जाती है । यह त्योहार खुशियों का त्योहार है । इस त्योहार की तैयारी कई दिन पूर्व से शुरु हो जाती है ।

दीपावली का अर्थ  ---- दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है । दीप + अवली ।
दीप का मतलब होता है दीपक और अवली का अर्थ होता है कतार या पंक्ति । इसका मतलब ये हुआ कि दीपक को पंक्ति बद्ध जलाना रौशनी करना ।
इस दिन लोग अपने घर , द्वार,  दुकान सभी जगह बहुत सारे दीपक जलाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं । गाँव शहर सभी जगह दीपक की रौशनी से जगमगा उठता है ।

कब मनाया जाता है  ----- दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को मनाया जाता है । अमावस्या की काली रात में दीपक की रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है । उस दिन काली रात का पता ही नहीं चलता ।
असतो मा सदगमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
अर्थात असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही मनुष्य का मुख्य लक्ष्य है । दीपावली का त्योहार इसी चरितार्थ को पूरा करता है ।

दीपावली क्यों मनाते हैं  ----- भगवान श्री राम चंद्र जी 14 वर्ष के वनवास काटकर इसी दिन वापस लौटे थे । अयोध्या वासी इस खुशी में दीपक जलाकर धूमधाम से उनका स्वागत किये थे । इसी की याद में प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाया जाता है । यह त्योहार एक प्रकार से असत्य पर सत्य की जीत है ।

स्वच्छता का संदेश  --- दीपावली त्योहार के पूर्व लोग अपने- अपने घरों की साफ सफाई करते हैं । खिड़की दरवाजे पर रंग रोगन करते हैं । दीवारों की पुताई की जाती है , तथा घर के आसपास को भी पूरी तरह साफ सुथरा किया जाता है । इस प्रकार यह त्योहार स्वच्छता का संदेश भी देता है ।

पाँच दिनों का त्योहार  --- दीपावली का त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है । बच्चे-  बूढ़े सभी नये - नये कपड़े पहनते हैं,  पटाखे फोड़ते हैं और अपनी खुशियाँ प्रकट करते हैं ।

धनतेरस  ---- दीपावली के दो दिन पूर्व अर्थात कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन धनतेरस के रुप मनाया जाता है । इस दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था । इसे राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रुप में भी मनाया जाता है ।
इस दिन शाम को घर के बाहर मुख्य द्वार पर तेरह दिये जलायें जाते हैं ।
इस दिन बर्तन और चाँदी खरीदने की प्रथा है । कहा जाता है कि धन (वस्तु)  खरीदने से तेरह गुणा वृद्धि होती है ।

नरक चौदस या छोटी दीपावली  ------ दीपावली के एक दिन पूर्व नरक चौदस मनाया जाता है । इस दिन प्रातः काल तेल लगाकर अपामार्ग ( चिड़चिड़ा ) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है । ऐसी मान्यता है ।
शाम को दीपदान की प्रथा है,  जिसे यमराज के लिए किया जाता है । लोग घरों में दीपक जलाकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं ।

दीपावली  ------ दीपावली के दिन सभी लोग माता लक्ष्मी,  सरस्वती और गणेश जी की पूजा करते हैं । घर , दुकान, गली, मुहल्ला, सभी जगह दीपक जलाकर रौशनी की जाती है । लोग नये - नये कपड़े पहनते हैं । पटाखे फोड़ते हैं ।
घर के सभी सदस्य एक साथ मिलकर लक्ष्मी जी की आरती उतारते हैं । पूजा करने के बाद मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं ।
इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से माँ लक्ष्मी खुश हो जाती है और धन की वृद्धि करती है ।
इस तरह दीपावली का त्योहार मिलजुल कर भाईचारे के साथ मनाया जाता है ।

गोवर्धन पूजा  ---- दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा किया जाता है । इस दिन गाय बैलों को धोकर उनकी पूजा की जाती है और खिचड़ी खिलाई जाती है ।
भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली से उठाया था । इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं । रावत लोग खूब नाचते है और गाय बैलों को सोहई बाँधते हैं ।

भाईदूज  ----- भाईदूज के दिन बहनें अपने भाइयों की पूजा करती हैं और मिठाई खिलाती है । भाई भी बहनों को उपहार स्वरूप रुपये पैसे या कपड़े आदि देते हैं ।
इस प्रकार यह त्योहार पाँच दिनों तक चलता है ।

उद्देश्य  ---- इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य है जीवन में रोशनी लाना , खुशियाँ लाना है । लोग बारहों महीना अपने काम में व्यस्त रहते हैं । इसी व्यस्तता में कुछ पल निकाल कर लोग एक दूसरे से मिलते हैं और खुशियाँ प्रकट करते हैं ।

लेखक
महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक)
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला  -- कबीरधाम
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com


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