मेला

मेला ( सार छंद)

भीड़ लगे हे अब्बड़ भारी , सबझन जावत मेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।
कोनो करथे हरहर गंगे , कोनों डुबकी मारे ।
दर्शन करथे मंदिर जाके , पुरखा अपने तारे ।।
फूल चढ़ाये कोनों संगी , कोनों नरियर भेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

किसम किसम के खेल खिलौना , मेला मा सब आये ।
खई खजाना ले दे बाबू , लइका मन चिल्लाये ।।
दाई लेवय गरम जलेबी , बाबू लेवय केला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

जगा जगा हे खेल तमाशा  , भीड़ लगे हे भारी ।
कोनों फेंकत पइसा कौड़ी , कोनों देवय गारी ।।
जिनगी के मेला मा संगी , बहुते हवय झमेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan Mati 


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