हलाकान

हलाकान
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गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान ,
चिरई चिरगुन प्यासे हे, कइसे बांचही परान।

सूरज देवता के ताप में, भुंईयां ह जरत हे
रुख राई के पत्ता झरगे,पऊधा मन मरत हे।
छेरी पठरु भूख मरत, बांचे नइहे पान
गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान ।

रहि रहि के टोंटा ह , अब्बड़ सुखावत हे,
खवात नइहे भात ह, पानी भर पीयावत हे।
घेरी बेरी दाई मांगत, पानी ल लान
गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान।

तरिया नदिया के सब, पानी अटावत हे
कुंवा बावली अऊ, बोरिंग पटावत हे।
कोन जनी संगी , कइसे बांचही परान
गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान।

घेरी बेरी लाइन गोल, पुटठा ल धुंकत हे
चटक गेहे पेट ह, कुकुर मन भुंकत हे।
बबा ह चिल्लावत हे, डंडा ल लान
गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान।

महेन्द्र देवांगन माटी
        पंडरिया

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