गरमी बाढ़त हे
गरमी बाढ़त हे
***************
दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे।
कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे।
कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे।
तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे ।
घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे ।
चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे।
नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे।
तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे।
कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे।
झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे।
***********
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम
Comments
Post a Comment