बारी के फूट

बारी के फूट
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वाह रे बारी के  फूट , फरे हस तैं चारों खूँट ।
बजार में आते साठ , लेथय आदमी लूट ।
दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय ।
छोटे बड़े जम्मो मनखे , बड़ सऊंख से खाय ।
जेहा येला नइ खाय , अब्बड़ ओहा पछताय ।
मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय ।
बखरी मा फरे हावय , पाना मा लुकाय ।
कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय ।
नान नान लइका मन , चोराय बर जाय ।
कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय ।
कूदत फांदत भागे टूरा , नइ पावय पार ।
डोकरी ह चिल्लात हावय , मुँहू ल तोर टार ।
अब्बड़ फरे हे बारी मा , नइ बोलंव मय झूठ ।
सबो झन ला नेवता हावय , खाय बर आहू फूट ।

रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
priyadewangan1997@gmail.com

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