उल्लाला छन्द -- 2
13 - 13 में यति ।
विषम अउ सम चरण में तुकांत ।
करथे जेहा काम जी, ओकर होथे नाम जी ।
दया धरम अउ दान कर , सबके तेंहा मान कर ।।
भेद भाव झन मान जी, सबला अपने जान जी ।
सेवा करले दीन के, कोनों ला झन हीन के ।।
बेटी घर के शान हे , जग मा ओकर मान हे ।
कुल के दीपक मान लव , बेटी ला पहिचान लव ।।
गरमी बाढ़त जात हे , माथ पसीना आत हे ।
पानी नइहे बोर मा , लइका रोवय खोर मा ।।
पानी राखव ढाँक के, देखव थोरिक झाँक के ।
धुर्रा माटी झन परय , कीट पतंगा झन मरय ।।
चट चट जरथे पाँव हा, मिलते नइहे छाँव हा ।
पत्ता सबो झरत हवय , पौधा घलो मरत हवय ।।
करही जेहा सेवा जी, खाही ओहा मेवा जी ।
दीन दुखी ला दान कर , सबके आदर मान कर ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
@ Mahendra Dewangan Mati
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