उल्लाला छंद - 1
( 13 + 13 मात्रा । सम - सम चरण तुकांत )
जिनगी के हे चार दिन, सब ले मीठा बोल जी ।
कड़ुवा भाखा बोल के, अपन भेद झन खोल जी ।।
गरमी अइसे बाढ़ गे , जीव सबो थर्राय जी ।
पानी नइहे बूँद भर , कइसे प्यास बुझाय जी ।।
तीपय हावय भोंभरा , पनही नइहे पाँव जी ।
दिखत नइहे पेड़ हा , खोजत हाँवव छाँव जी ।।
दू दिन के जिनगी हवय , जादा झन इतराव जी ।
कर ले सुघ्घर काम ला , जग मा नाम कमाव जी ।।
आज काल के छोकरा, हीरो कट हे बाल जी ।
घूमत हावय खोर मा , बिगड़े हावय चाल जी ।।
आजकाल के लोग मन , मानत नइहे बात जी ।
पूछत नइहे बाप ला , मारत हावय लात जी ।।
बिन आँखी के देखथे , सुन लेथे बिन कान जी ।
बिना गोड़ के रेंगथे , अइसन हे भगवान जी ।।
घूमत हावय गाय हा, सुध ना कोनों लेत जी ।
कागज झिल्ली खात हे , करलव थोकिन चेत जी ।।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
@ Mahendra Dewangan Mati
Comments
Post a Comment