दोहे के रंग
दोहे के रंग
गरम गरम हावा चलत , माथ पसीना आय ।
जेठ महीना घाम हा, सबला बहुत जनाय ।।1।।
मूड़ म साफी बाँध के, पानी पीके जाव ।
रखव गोंदली जेब मा , *लू* से होत बचाव ।।2।।
जनम दिवस के मौज मा , काटव झन जी केक ।
ओकर बदला प्रेम से, पेड़ लगावव एक ।।3।।
पानी नइहे खेत मा, कइसे होही धान ।
देखत हवय अगास ला , भुँइया के भगवान ।।4।।
बेटा राखव एक झन , कुल मा करय प्रकाश ।
जइसे तारा बीच मा , चंदा रहय अगास ।।5।।
करिया दिखय अगास हा, घटा हवय घनघोर ।
गरजत बादर जोर से, वन मा नाचय मोर ।।6।।
खेलव झन जी आग से, हो जाथे ये काल ।
धन दौलत हा बर जथे, बन जाथे कंगाल ।।7।।
भेद भाव करके कभू, आगी झने लगाव ।
सुनता से रहि के सबो, घर परिवार चलाव ।।8।।
आगी पानी देख के, लइका लोग बचाव ।
अलहन झन आवय कभू , सुघ्घर चेत लगाव ।।9।।
पनही नइहे गोड़ मा , चट चट जरथे पाँव ।
आगी जइसे घाम हे , खोजय सबझन छाँव ।।10।।
जंगल मा आगी लगय , जुर मिल सबो बुझाव ।
झन होवय नुकसान जी, सबके जीव बचाव ।।11।।
पानी हा अनमोल हे , कीमत एकर जान ।
बिन पानी जीवन नहीं , येला तैंहर मान ।।12।।
छत के उपर टांग दे , पानी भरे गिलास ।
आही चिरई घूम के, बूझा लेही प्यास ।।13।।
पानी बर सब जीव हा , तड़पत हे दिन रात ।
फोकट के झन फेंक तैं , मानव सबके बात ।।14।।
सेवा कर माँ बाप के, इही ल तीरथ जान ।
घर मा रखबे प्रेम से, लगही स्वर्ग समान ।।15।।
मया पिरित के डोर मा , बँधे रहय परिवार ।
घर अइसन राहय जिहाँ , मिलय सबो संस्कार ।।16।।
लड़ई झगरा रोज के, जेकर घर मा होय ।
अइसन घर परिवार हा, माथा धरके रोय ।।17।।
जेकर घर मा प्रेम हे , वो घर स्वर्ग समान ।
हांसत खेलत दिन बितय, येला तैंहर जान ।।18।।
मुनगा मा हे गुण बहुत , होय रोग सब दूर ।
ताकत मिलथे देंह ला , खावव जी भरपूर ।।19।।
मुनगा मा हे गुण बहुत, छेवारी मन खाय ।
बीमारी सब भागथे , ताकत अब्बड़ आय ।।20।।
घर के बारी खेत मा, मुनगा पेड़ लगाव ।
बेंचव वोला गाँव मा, पइसा अबड़ कमाव ।।21।।
मुनगा ले औषधि बनय , आथे अब्बड़ काम ।
गाँव शहर मा बेच ले, मिलही पूरा दाम ।।22।।
मुनगा पत्ती पीस के, काढा बने बनाव ।
पीयव खाली पेट मा , गठिया रोग भगाव ।।23।।
मुनगा पत्ती पीस के, सरसों तेल मिलाव ।
चोट मोच अउ घाव मा , येला तुरँत लगाव ।।24।।
सबके संकट दूर कर , राम भक्त हनुमान ।
साधु संत अउ दीन जन , करथे सब गुनगान ।।25।।
करय पाठ जे ध्यान से , फल पावय भरपूर ।
नाम लेत हनुमान के, होथे संकट दूर ।।26।।
कुकरा बासत जाग के, करत हँवव गोहार ।
झोंकव सबझन प्रेम से, माटी के जोहार ।।27।।
निकले हावय घाम हा, भुँइया जरथे पाँव ।
ताला बेली होत हे , खोजत सबझन छाँव ।।28।।
पानी नइहे गाँव मा , कुआँ तरिया सुखाय ।
कइसे बँचही जीव हा, सबला चिन्ता छाय ।।29।।
जेठ महीना घाम मा , जरत हवय जी पाँव ।
हलाकान सब होत हे , राही खोजय छाँव ।।30।।
पेड़ लगावव मेड़ मा , मिलही सबला छाँव ।
सुरताही सब बैठ के, लेही तोरे नाँव ।।31।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
08/04/ 2018
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