उल्लाला छन्द - 3
सुन राम नाम से होत हे , भव सागर हा पार जी ।
तँय सेवा करले दीन के, जिनगी के दिन चार जी ।।
सुन जिनगी जब तक तोर हे , दया धरम अउ दान कर ।
तँय का ले जाबे साथ मा , सबके इँहचे मान कर ।।
जब रइही तन मा साँस हा, तब करबे तैं काम जी ।
सुन छुट जाही जब जीव हा , जाबे ऊपर धाम जी ।।
सुन किरपा होथे गुरु मिलय , देवय सबला ज्ञान जी ।
सब अंधकार मिट जात हे , लगय पढ़े मा ध्यान जी ।।
झन बेटी बेटा भेद कर , दूनों एक समान जी ।
ये घर के मर्यादा रखय , कुल के दीपक जान जी ।।
सुन जब जब होथे देश मा , अब्बड़ अत्याचार जी ।
तब बेटी आथे रूप मा , दुर्गा के अवतार जी ।।
सुन सेवा करले गाय के, आथे अब्बड़ काम जी ।
सब देवी देवता वास हे , येहा तीरथ धाम जी ।।
सुन दूध दही ला खाय से, ताकत अब्बड़ आय जी ।
अब पालव सबझन गाय ला , कामधेनु ये ताय जी ।।
नियम --
(1) 2 पद 4 चरण
(2) सम - सम चरण मा तुकान्तता ।
(3) 15 - 13 मात्रा में यति
यानी विषम चरण में 15 मात्रा अउ
सम चरण में 13 मात्रा ।
(4) विषम चरण के शुरु में "द्वि कल" याने
दो मात्रा वाले शब्द आना चाहिए ।
(5) येला "उल्लाल" छन्द भी बोले जाथे ।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
8602407353
@ Mahendra Dewangan Mati
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