पानी के दुख

पानी के दुख
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गाँव गाँव मा पानी बर , हाहाकार होवत हे ।
मरत हावय पियास मा , पानी बर रोवत हे ।
तरिया नदियाँ कुँवा मन , जम्मो हा सुखावत हे।
चलत राहय बोर हमर , उहू हा अटावत हे।
अटक अटक के नल चलथे , लाइन सबो लगावत हे ।
बूँद बूँद मा घड़ा भरथे , सीरतोन के कहावत हे ।
बिहनिया ले पनिहारिन मन , लड़ई झगरा होवत हे ।
घेरी बेरी होवत लाइन गोल , माथा धरके रोवत हे ।
का बताबे पानी के दुख ला , बहू हा गोठियावत हे ।
रोज रोज के मइके मा , फोन ला लगावत हे ।

रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati

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