रोला छन्द -- 2

(1)
झन बोलव जी झूठ , भेद हा खुलबे करही ,
करबे गलती काम , पाप भोगे ला परही ।
सत के रस्ता रेंग , देखथे ऊपर वाला ,
देवय सबके साथ,  जेन हावय रखवाला ।।
(2)
होवत हाहाकार , बाढ़ गे गरमी अइसे,
तड़पत हावय जीव,  नीर बिन मछरी जइसे ।
माथ पसीना आय,  देंह हा झुलसत हावय ,
पनही नइहे पाँव, आदमी कइसे जावय ।।
(3)
पानी नइहे आज, कोन हा येला लाही ,
सुक्खा हावय बोर , कहाँ ले पानी आही ।
तरसत हावय जीव,  सबे झन माँगय पानी,
बाढ़य गरमी खूब , आय सुरता तब नानी ।
(4)
बाढ़त हावय घाम, रखव जी बहुते पानी,
होटल बासा छोड़,  खाव झन आनी बानी ।
निकलव मुँह ला बाँध,  धरे झन तोला झोला ,
पीयव शरबत जूस,    कका चेतावय  मोला ।
(5)
बेटी बेटा एक  , भेद तैं झन कर बाबू ,
दूनों करही मान , राख ले अपने काबू ।
पढ़ा लिखा के देख , होय जी तोर सहारा,
रौशन करही नाम  , जगत हा जानय सारा ।।
(6)
जरथे चटचट पाँव,  घाम हा अबड़ जनावय,
कटगे सब्बो पेड़,  कहाँ ले छइहाँ पावय ।
करलव जस के काम , सबो झन पेड़ लगावव ,
मिल जुल आवव आज , धरा ला सुघर बनावव ।।
(7)
दुनिया धोखे बाज , समय मा सँग नइ देवय ,
छोड़ बीच मझधार , बुड़ो के सब खुश होवँय ।
खुद तँउरे बर सीख,  मिलय जी मोती तोला,
माँग मदद झन भीख, बनव मत जादा भोला ।।
(8)
आये हावय आज, गाँव मा अबड़ बराती,
नाचय कूदय खूब, बबा के संग मा नाती ।
देखय सबझन खोर, गली मा सब नर नारी,
हाँसय गावय लोग, करत हे सबके चारी ।।

महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया  (कबीरधाम )
छत्तीसगढ़
@Mahendra Dewangan Mati

नियम --
डाँड़ (पद) - 4 ,  चरण - 8
विषम चरण मा 11 मात्रा अउ सम चरण मा 13 मात्रा ।
हर डाँड़ मा कुल 24 मात्रा ।
डाँड़ के आखिर मा 1 गुरु या 2 लघु आना चाहिए ।

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