रोला छन्द -- 1

रोला छन्द

पहिली सुमिरँव आज,  गुरू के चरण पखारँव ,
जोड़त हाँवव हाथ , माथ ला अपन नवावँव ।
करबे किरपा नाथ , आज तँय मोला वर दे ,
मँय अज्ञानी ताँव , ज्ञान के झोली भर दे ।।1।।

जय गणपति गणराज , शरण मा तोरे आँवव ,
दे दे मोला ज्ञान  , माथ मँय तोर नवाँवव ।
सबके करथस काज,  बुद्धि के दाता तैंहा  ,
रख ले मोरो लाज , परत हँव पँइया मैंहा ।।2।।

झन कर तँय अभिमान,  प्रेम से नाम कमाले,
काया माटी जान , राम के गुण ला गाले ।
जिनगी के दिन चार,  संग मा कछु नइ जाये ,
जाबे खाली हाथ,  जगत मा जइसन आये ।।3।।

सेवा कर तँय आज,  जगत मा नाम कमाबे,
दीन दुखी ला भोज,  अगर तँय रोज कराबे ।
दया धरम ला मान , पार हो जाही नइया,
होही मन हा शांत,  परम गति पाबे भइया ।।4।।

जब तक हावय जीव,  लगे हे अब्बड़ माया,
छूट जथे जब प्राण , होय ये माटी काया ।
अजर अमर हे जीव,  बदल जाथे जी चोला ,
झन कर तेहा शोक , होय दुख काबर तोला ।।5।।

जिनगी हे अनमोल,  राम के गुन ला गा ले,
कट जाही सब पाप , दान कर पुण्य कमा ले ।
माया मोह ल छोड़,  काम जी कछु नइ आये,
होही जग मा नाम,  संग मा कछु नइ जाये ।।6।।

काया कंचन तोर  , एक दिन माटी होही,
जाही छूट परान , मया सब मिल के रोही ।
जाबे खाली हाथ  ,  छूट जाही सब माया  ,
देखत रइही लोग  , राख हो जाही काया ।।7।।

कतको घूमत आज,  गाँव मा बाबा जोगी  ,
करथे मीठा बात,  करम से हावय भोगी ।
माला फेरत हाथ , माथ मा तिलक लगाये ,
फांसय सबला रोज,  लूट के तुरत भगाये ।।8।।

मुँह ले  निकले गोठ , कभू वापिस नइ होवय ,
पाछू बर पछताय,  माथ ला धर के रोवय ।
करबे करुहा बात , सबो हा दुरिहा भागय,
सोंच समझ के बोल,  लोग ला दुख झन लागय।।9।।

नाचय भोला आज, पहिर के बघवा छाला,
अंग भभूत लगाय,  घेंच मा पहिरे माला  ।
डम डम डमरु बजाय , भूत मन अब्बड़ नाचय ,
आनी बानी रूप , देख के  सब झन हाँसय ।।10।।

माया हवय अपार  , तोर लीला हे भारी ,
जग के तारन हार , करय जप सब नर नारी ।
कहिथे भोले नाथ , सबो के संकट हरथस ,
परय शरण मा तोर  , आस ला पूरा करथस ।।11।।

नाचय राधा संग,  गोप अउ मदन मुरारी ,
देवत हावय ताल , देख के सब नर नारी ।
देखय पूरा गाँव,  कृष्ण के लीला भारी ,
मन्द मन्द मुसकाय,  जगत के पालन हारी ।।12।।

हो जाथे बरबाद,  जेन हा घमंड करथे,
राजा हा रँक होय , समय के थपरा परथे ।
पल मा होवय नाश , भुजा के बल मा लड़थे,
करय समय मा काम,  उही हा आघू बढ़थे ।।13।।

रचना
@महेन्द्र देवांगन माटी
    पंडरिया  (कवर्धा )
      छत्तीसगढ़
    8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

नियम -
(1) डांड़  (पद) 4 ,  चरण - 8
(2) विषम चरण मा 11 मात्रा  ,  सम चरण मा
      13 मात्रा ।
(3) हर डांड़ मा 24 मात्रा ।
(4) डांड़ के आखिर मा 1 गुरु या 2 लघु आना चाहिए ।

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