गरमी के मारे
गरमी के मारे
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का लिखों कहिके, मन में सोंचत हों
गरमी के मारे पसीना ल पोंछत हों
चइत के महिना में, अतेक भोंभरा जरत हे
चिरई चिरगुन मन, पियास में मरत हे
पंखा के हावा गरम गरम लागत हे
नींद नइ परे मच्छर ह चाबत हे
भरे गरमी में लइका इस्कूल जावत हे
पसीना चुचवात अऊ भात ल खावत हे
कक्षा में बइठे सब झन उसनावत हे
गुरूजी मन के घेरी बेरी टोंटा सुखावत हे
महेन्द्र देवांगन माटी
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