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Showing posts from February, 2019

देश नहीं झुकने देंगे

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देश नहीं झुकने देंगे (लावणी छंद) दागो गोला आतंकी पर , बदला हमको लेना है । मारा है वो ईट फेककर ,  अब पत्थर से देना है ।। टूट पड़ो बैमानों पर अब , भाग कहीं ना जा पायें । खाल खींचकर मिर्चा भर दो , तड़प तड़प कर मर जाये ।। बहुत हुआ समझौता वादी , अब तो चुप ना बैठेंगे । आँख दिखाया है हमको तो,  गला पकड़ कर ऐठेंगे ।। बम बारुद की वर्षा होगी , भाग कहाँ तुम जाओगे । बील में छिपे गद्दारों को , खींच खींच कर लायेंगे ।। माटी की सौगंथ हमें हैं  , देश नहीं झुकने देंगे । छेड़ा है जब शेरों को तो , बदला अब जरूर लेंगे ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

शहीदों को नमन

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शहीदों को नमन आतंकी का अत्याचार , पड़ रहा है सब पर भार। नहीं छोड़ेंगे अब किसी को , करेंगे हम सब मिलकर वार। अपने वतन की रक्षा खातिर, जान की बाजी लगायेंगे । बदला लेंगे सब मिलकर , बारूद हम भी गिरायेंगे।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

मेला

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मेला ( सार छंद) भीड़ लगे हे अब्बड़ भारी , सबझन जावत मेला । धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।। कोनो करथे हरहर गंगे , कोनों डुबकी मारे । दर्शन करथे मंदिर जाके , पुरखा अपने तारे ।। फूल चढ़ाये कोनों संगी , कोनों नरियर भेला । धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।। किसम किसम के खेल खिलौना , मेला मा सब आये । खई खजाना ले दे बाबू , लइका मन चिल्लाये ।। दाई लेवय गरम जलेबी , बाबू लेवय केला । धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।। जगा जगा हे खेल तमाशा  , भीड़ लगे हे भारी । कोनों फेंकत पइसा कौड़ी , कोनों देवय गारी ।। जिनगी के मेला मा संगी , बहुते हवय झमेला । धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati 

बदला लेबो ( शहीदों को नमन )

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आतंकी के होवत हमला , सेना ऊपर फेंकत बम ला । बढगे हावय अत्याचारी , रोवत घर मा सब नर नारी । लाश परे हे एती ओती , बिखरे हावय चारों कोती । टूटे जइसे माला मोती , बुझगे कतको घर के जोती । सेना ला अब छोड़व खुल्ला , मार भगा आतंकी मुल्ला । पाकिस्तान में फोड़व गोला , कर दे तांडव बमबम भोला । *पुलवामा* के बदला लेवव , मुड़ी काट के हाथ म देवव । बैरी के अब बाजू काटव ,  कउवाँ चील म ओला बाँटव । लहू सबो के खौलत हाबे , भाग कहाँ अब तैंहर जाबे । कब तक बकरा खैर मनाबे, धार छुरी हे अभी पुजाबे । बोटी बोटी तोला करबो ,  खड़री निछके मिरचा भरबो । चाहे जान भले दे देबो ,  फेर तोर ले  बदला लेबो । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

वेलेंटटाइन डे के चक्कर

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वेलेंटटाइन डे के चक्कर में , मँहू एक ठन गुलाब लानेव । हैप्पी वेलेंटटाइन डे कहिके , अपन बाई ल थमायेंव । वोला देखिस बाई ह , वहू ह लजा गे । यहा उमर में तोला , का जवानी छा गे । दे के दिन मे दे नइ हस , अब गुलाब देवत हस । छुछू कस मुंहू लमा के , फोकट के चुमा लेवत हस । नून तेल के चिंता नइहे  , फूल ल धर के लानत हस । मोर अइसने जी बगियाय हे , अउ जरे मा नून डारत हस । मेंहा कहेंव -- चार दिन के जिनगी पगली , आ हाँस के गोठिया ले । का राखे हे जिनगी में,  चल वेलेंटटाइन डे मना ले । वोहा कहिथे -- का होगे तोला , बड़ आशियाना मूड देखावत हस । चुंदी दाँत झरगे तभो ले , अपन थोथना ल लमावत हस । अरे लोग लइका के चिंता कर , ये तो विदेशी संस्कृति आय । हमर मया तो जनम जनम तक हे , हमर बर तो रोज वेलेंटटाइन डे आय । ये झोला ल धर , अउ साग भाजी लान । ये जगा ले सोज बाय , अपन मुंहू ल टार । झोला ल धरा के वोहा , भीतरी में खुसर गे । वेलेंटटाइन डे के भूत ह , मोरो मूड़ ले उतर गे । गयेंव बजार मा अउ गुलाब नहीं  , अब गोभी के फूल ल लायेंव । ये ले मोर रानी कहिके  , ओकर हाथ मे थमायेंव । फूल गोभी ल देख के ,

बसंत छा गे

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बसंत छा गे

हरिगीतिका छंद

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(1) सरस्वती वंदना जय शारदे माँ सुन हमर , विनती हवय अब तोर ले । माफी करव तुम भूल चुक , होवय गलत जो मोर ले ।। बालक हवँव अनजान मँय , जोरत हवँव अब हाथ ला । रखबे हमर अब लाज तैं , टेंकत हवँव  मँय माथ ला ।। ****************************************** (2) बेटी बचाव मारव कभू झन कोख मा , बेटी घलो संतान जी । करही जगत मा नाम ला , येला तहूँ अब मान जी ।। लक्ष्मी बरोबर मान ले , भरही सबो भंडार ला । आवय नहीं दुख जान ले , रखही सुखी घर द्वार ला ।। ****************************************** (3) पानी बचाव पानी बचावव आज मिल , सबके इही आधार हे । खइता करव झन फेंक के , येकर बिना अँधियार हे ।। नदियाँ कुवाँ हा सूख गे , होवत सबो हलकान अब । कइसे बचाबो जीव ला , पानी बिना सुनसान सब ।। ************************************* (4) कचरा फेंकव कभू झन खोर मा , कचरा ल तैंहा जान के । राखव सफाई रोज के  , अपने सबो ला मान के ।। रखथे सफाई जेन हा , होवय नहीं बीमार जी  । हाँसी खुशी दिन बीतथे , सुघ्घर लगे घर द्वार जी ।। ******************************************** (5) लफंगा टूरा आ गे हवय अब देख ले , कइस

बसंत बहार

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ऋतु बसंत का मौसम आया , सभी ओर खुशहाली छाया । बाग बगीचा सुंदर दिखते , खुश होकर सब कविता लिखते । फूल खिले हैं डाली डाली,  खेतों में गेहूँ की बाली । चना मटर सरसों सब फूले , चिड़िया चहके झूला झूले । कोयल कूके अमवा डाली , सुंदर दिखते परसा लाली । ऋतु बसंत की महिमा भारी , झूमे नाचे सब नर नारी । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

बावाकुपि

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हमर गाँव के तीर मा हवय , अब्बड़ सुघ्घर धाम । जाथे सबझन दर्शन खातिर,  "बावाकुपि" हे नाम ।। "माण्डव ऋषि" के आश्रम जाके , परथे सबझन पाँव । मनोकामना पूरा होथे , लेथे जेहा नाँव ।। सुघ्घर जंगल झाड़ी हावय , बारो महिना छाँव । नदियाँ तीर म बसे सबोझन,  "बोरसी" हमर गाँव ।। बावाकुपि ला देखे खातिर,  धुरिहा ले सब आय । साधु संत के दर्शन पा के , जीव धन्य हो जाय ।। महेन्द्र देवांगन माटी  बोरसी  (फिंगेश्वर ) जिला -- गरियाबंद  छत्तीसगढ़  8602407353 Mahendra Dewangan Mati 

बसंत आ गे

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जब ले आ हे ऋतु बसंत हा , मन हा सबके डोलत हे । बाग बगीचा सुघ्घर लागे , रहि रहि कोयल बोलत हे ।। मउरे हावय आमा संगी , अब्बड़ के ममहावत हे । फूले हावय फूल सबो जी,  सबके मन ला भावत हे ।। सुरसुर सुरसुर हवा चलत हे , डारा पाना डोलत हे । बाग बगीचा सुघ्घर लागे , रहि रहि कोयल बोलत हे ।। पींयर पींयर सरसों फूले , खेत खार मा झूमत हे । चना मटर ला खाये बर जी,  लइका मन सब घूमत हे ।। आये हे संदेश पिया के , छुप छुप चिठ्ठी खोलत हे । बाग बगीचा सुघ्घर लागे , रहि रहि कोयल बोलत हे ।। (लावणी छंद)  मात्रा- -- 16 +14 = 30 रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया छत्तीसगढ़  8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

हाइकु

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1 शीत लहर  ( महेन्द्र देवांगन माटी)  घने कोहरे धुंधला आसमान  छाये अंधेरा । शीत लहर  चले चारों पहर ढाया कहर । चली हवाएँ  देंह कँपकपाये  ठंड जो आये । 2  नखरे वाली रुप सुहाना  सब कोई दीवाना  देख जमाना । चाँद सा रुप बैठी छत पे चुप देखते छुप । होंठों पे लाली उमरिया है बाली नखरे वाली । महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया छत्तीसगढ़  8602407353 @ Mahendra Dewangan Mati